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________________ जैन संस्कृति ११६ लोग यहां हजारों की संख्या में आते हैं और मनौती मनाते हैं । भील लोग इस मूर्ति को 'कालाजी' कहकर पुकारते हैं और उनके मन में इसके प्रति इतनी श्रद्धा और विश्वास है कि 'कालाजी की आण को वे सर्वोपरि मानते हैं । जैन परम्परा के कुछ विशिष्ट आचार्य श्वेताम्बर परम्परा १. आचार्य शय्यम्भव [ वीर नि० पहली शताब्दी ] राजगृह के वात्सगोत्रीय ब्राह्मण परिवार में इनका जन्म हुआ । ये धुरंधर विद्वान् थे । ये वेदों के वेत्ता और वेदांग की अन्यान्य शाखाओं के ज्ञाता थे । 1 आचार्य प्रभव महावीर की शासन परंपरा के चतुर्थ पट्टधर थे । वे शासन का भार किसी योग्य व्यक्ति को संभलाकर अंतिम अवस्था में ध्यान - स्वाध्याय में लीन होना चाहते थे । उन्होंने समस्त साधु-साध्वी-संघ की ओर ध्यान दिया । एक भी भारवहन करने योग्य नहीं मिला । तब उन्होंने अपने श्रावकों की ओर अवधान किया। वहां भी निराशा ही मिली । तब उनका ध्यान यज्ञकर्त्ता शय्यंभव पर टिका और उन्हें लगा कि यह व्यक्ति शासन के भार को वहन करने योग्य है । उन्होंने युक्ति से समझाकर शय्यंभव को जैन शासन में दीक्षित किया । शय्यंभव ने जैन तत्त्ववाद का गहरा अध्ययन किया । वे आचार्य प्रभव के उत्तराधिकारी बन गए । शय्यंभव जब दीक्षित हुए थे तब उनकी पत्नी गर्भवती थी । उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम मनक रखा गया। जब वह बड़ा हुआ तब पिता की खोज में चंपानगरी आया। गांव के बाहर दोनों मिले। पुत्र ने दीक्षित होने की इच्छा व्यक्त की । शय्यंभव ने उसे दीक्षित कर दिया । शय्यंभव हस्तरेखा के विज्ञाता थे । उन्होंने देखा कि मनक का आयुष्य केवल छह महीनों का है । इस अवधि में उसे मुनिचर्या से अवगत कराने के लिए उन्होंने 'दशवैकालिक' सूत्र का निर्यूहण किया पूर्वों के विभिन्न अंशों से उसका संकलन किया। मुनि मनक उसमें निष्णात हुआ । छह महीने बोते । मुनि मनक का स्वर्गवास हो गया । आचार्य शय्यंभव का मन मोह से भर गया । उनकी आंखें छलक आईं । अन्य मुनियों ने इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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