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________________ ११२ जैन परम्परा का इतिहास मैसूर के होयसल वंश के राजा जैन थे। विजयनगर के राजाओं की जैन-धर्म के प्रति सहिष्णुता रही है। उन्होंने अनेक स्थानों पर जैन मन्दिर बनवाए, मूर्तियां स्थापित की और जैन मुनियों को संरक्षण दिया। उत्तर भारत में भी जैन धर्म का प्रभुत्व बना रहा। कभी वह कम हो जाता और कभी बढ़ जाता। कुषाण सम्राटों के शासनकाल [ई० ७५-२५०] तक, विशेषकर मथुरा जनपद में जैन-धर्म उन्नत और प्रभावशाली रहा। तीसरी शताब्दी के लगभग जब कुषाणों की पराजय हुई तब जैन-धर्म का प्रभाव भी हट गया, किन्तु आगन्तुक भद्रक, अर्जुनायन आदि युद्धोपजीवी गणराज्य जैनों के प्रति सहिष्णु बने रहे । जैन मुनियों के विहरण में कोई बाधा नहीं आई। गुप्तकाल का प्रारम्भ लगभग ई० ३२० माना जाता है । गुप्त नरेश यद्यपि जैन नहीं थे, फिर भी वे जैन-धर्म के प्रति-सहिष्णु थे। उनका वर्चस्व छठी शताब्दी के मध्य तक रहा। कन्नौज का प्रतापी सम्राट हर्षवर्धन [ई० ६०६-६४७] का विशेष झुकाव जैन-धर्म की ओर नहीं था, फिर भी वह जैन विद्वानों का समर्थक और प्रतिष्ठापक था। __ मध्ययुग [१२ वीं शती के अन्त से १८ वीं के अंत तक में मुसलमानों के आक्रमण के कारण सभी धर्म-परम्पराओं को प्रहार सहने पड़े। जैन धर्म भी उससे अछूता नहीं रहा। फिर भी उत्तर भारत और दक्षिण भारत के अनेक अंचलों में जैन-धर्म के शासक, जैन-धर्म के संरक्षक या जैन-धर्म के पोषक राजा राज्य करते रहे और यह धर्म जनमानस को अहिंसा, सत्य आदि शाश्वत तत्त्वों की ओर आकृष्ट करता रहा। विदेशों में जैन-धर्म जैन-साहित्य के अनुसार भगवान् ऋषभ, पार्श्व और महावीर ने अनार्य देशों में विहार किया था। सूत्रकृतांग के एक श्लोक से अनार्य का अर्थ 'भाषा-भेद' भी फलित होता है। इस अर्थ की छाया में हम कह सकते हैं कि चार तीर्थंकरों ने उन देशों में भी विहार किया, जिनकी भाषा उनके मुख्य विहार-क्षेत्र की भाषा से भिन्न थी। भगवान् ऋषभ ने बहली [बैक्ट्यिा , बलख], अंडबइल्ला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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