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________________ चांदनी भीतर की है, स्त्री से हार गया। दोनों ओर से हानि है। कहीं भी विजय की बात नहीं। शायद इसी अपेक्षा से कहा गया होगा-स्त्रियों के साथ विवाद करना एक छुटपन का कार्य है । इस संदर्भ को व्यापक रूप दिया जा सकता है। स्त्रियों के साथ ही नहीं, किसी भी व्यक्ति के साथ विवाद करने वाला छोटा बन जाता है। ८४ यदिच्छसि गुरोर्भावं विवादं त्यज दूरतः । आग्रहेन विवादेन, लघुतां मानवो व्रजेत् ॥ यदि तुम महान् बनना चाहते हो तो विवाद को छोड़ दो । आग्रह और विवाद से मनुष्य छोटा बन जाता है। मनुष्य की मनोवृत्ति भगवान् महावीर ने कहा- विवादं च उदीरेs, अहम्मे अत्तपन्नहा । वुग्गहे कलहे रचे, पावसमणे ति वुच्चई || जो शान्त हुए विवाद को फिर से उभारता है, जो सदाचार से शून्य होता है, जो कुतर्क से अपनी प्रज्ञा का हनन करता है, जो कदाग्रह और कलह में रत होता है, वह पाप श्रमण कहलाता है। कुछ व्यक्तियों की मनोवृत्ति विवाद को उकसाने की होती है। विवाद का प्रसंग नहीं होता है तो भी वे जानबूझ कर विवाद को पैदा कर देते हैं । वे हर बात को विवाद का रूप दे देते हैं। भगवान् महावीर ने इसी मनोवृत्ति की ओर संकेत किया है। संवाद : विवाद दो शब्द हैं-संवाद और विवाद । संवाद का अर्थ होता है जुड़ जाना। विवाद का मतलब है टूट जाना, बिखर जाना । प्रत्येक बात को सम्यक् ग्रहण करने से संवाद बनता है किन्तु मनुष्य ऐसा नहीं करता। वह हर बात में विवाद खड़ा कर देता है। मूल बात तो जहां की तहां रह जाती है और एक नया अध्याय उसके साथ जुड़ जाता है। यह मानवीय प्रकृति की बहुत बड़ी समस्या है। महावीर ने जीवन शैली का महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया - विवाद के स्थान पर संवाद करना सीखो। विवाद और कलह विवाद, विग्रह और कलह-यह एक श्रृंखला है। पहले विवाद शुरू होता है, फिर बढ़ते-बढ़ते विग्रह बन जाता है। विवाद बढ़ा, खींचातानी हुई और कलह हो गया । कलह की समस्या शाश्वत समस्या है। आदमी बहुत कलह करता है पर कलह होता क्यों है ? अगर हम इस प्रश्न की मीमांसा करें तो साफ होगा - कलह सीधा नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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