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________________ जहां साधुता सिसकती है जब कभी लक्ष्मी किसी कृपण आदमी या दुष्ट आदमी के पास चली जाती है तब वह भी रोती है। वह सोचती है- मैं किसके पल्ले पड़ गई। गलत स्थान पर आ गई। जैसे लक्ष्मी जैसी शक्तियां गलत स्थान को पाकर सिसकने लग जाती हैं, वैसे ही साधुता जैसी पवित्र शक्ति किसी असाधुचरित व्यक्ति के पास चली जाती है तो सिसकने लग जाती है। पुण्यश्रमण महावीर ने मार्गदर्शन दिया-हर साधु सावधान रहे, साधुता को सिसकने न दे। एक साधक मुनि-धर्म की आराधना करता है, पांच महाव्रतों को ठीक पालता है, किन्तु वह व्यवहार में कुशल नहीं है, शान्ति-पूर्ण जीवन जीना नहीं जानता है तो साधुता सुबक उठती है। मुनि जीवन में समस्या पैदा हो जाती है। भगवान् महावीर ने पुण्यश्रमण के लिए जो बातें बतलाई हैं, उनमें कोरे महाव्रत ही नहीं हैं, पूरी जीवन की शैली का निरूपण है। मुनि एक प्रकार की जीवन-शैली को अपनाकर पापश्रमण बन जाता है और सम्यक् प्रकार की जीवन-शैली अपनाकर पुण्यश्रमण बन जाता है। बड़ा कौन बनता है पूज्य कालूगणी टमकोर से राजगढ़ पधार रहे थे। एक दिन मध्यवर्ती छोटे ग्राम में ठहरे। शाम का समय था। मैं और मेरे सहपाठी मुनि बुद्धमल्लजी आचार्यश्री की उपासना में बैठे थे। कालूगणी ने कहा-तुम बड़ा बनना चाहते हो या छोटा ? हमने तत्काल कहा-बड़ा । प्रत्येक आदमी बड़ा होना चाहता है, छोटा होना कोई नहीं चाहता। कालूगणी ने कहा--लो ! तुम यह श्लोक सीखो-- बालसखित्वमकारणहास्यं, स्त्रीषु विवादमसज्जनसेवा। गर्दभयानमसंस्कृतवाणी, षट्सु नरो लघुतामुपयाति। बाल-सखित्व, अकारण हास्य, स्त्रियों से विवाद, दुर्जन की सेवा, गधे की सवारी और असंस्कृत भाषा-इन छह कारणों से व्यक्ति लघुता को प्राप्त होता है। विवाद से बचें जो बच्चों के साथ ज्यादा हंसी-मजाक करता है या मित्रता करता है, जो अकारण हंसता है, बात-बात पर हंसता है, ऐसा व्यक्ति छोटा बन जाता है। जो व्यक्ति स्त्रियों के साथ विवाद करता है, वह भी छोटा बन जाता है। पुरुष को बड़ा माना जाता है और स्त्री को छोटा। स्त्री के साथ विवाद करे और जीत जाए तो लोग कहेंगे-आखिर स्त्री को ही तो जीता, क्या बड़ा काम किया ? हार जाएगा तो लोग कहेंगे--नपुंसक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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