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चांदनी भीतर की
हृदय परिवर्तन का अर्थ
अक्सर एक प्रश्न पूछा जाता है--व्यक्ति बदलता क्यों नहीं ? अमुक आदमी में परिवर्तन क्यों नहीं आया ? कल जिसने परिवर्तन का प्रयोग शुरू किया, वह आज कैसे बदल जाएगा? बदलना एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया से गुजरने पर ही बदलाव संभव बनता है। बदलना कोई सहज घटना नहीं है। बौद्धिक विकास करना उतना जटिल नहीं है, जितना जटिल है बदलना। एक व्यक्ति बौद्धक विकास बहुत कर सकता है, पर हृदय-परिवर्तन नहीं कर पाता। सबसे कठिन काम है हृदय-परिवर्तन करना। हृदय का प्रत्यारोपाण करते हैं। यह पंपिग करने वाले हृदय का परिवर्तन है। एक वह हृदय है, जो मस्तिष्क में है। उसका परिवर्तन करना बहुत जटिल है। हृदय-परिवर्तन का अर्थ है- मस्तिष्कीय परिवर्तन । एक हृदय का काम है पंपिग करना, यह भाव-परिवर्तन के लिए उत्तरदायी नहीं है। जिस हृदय-परिवर्तन की चर्चा की जा रही है, उसका अर्थ है-भावधारा का परिवर्तन । भावधारा को बदलने की एक प्रक्रिया है। उसके बिना परिवर्तन की संभावना नहीं की जा सकती। बदलाव कब?
परिवर्तन की अनिवार्य शर्त है-गहरी प्यास जगे। शिष्य ने गुरु से प्रार्थना की-गुरुदेव ! मैं साधना करना चाहता हूं, आप कोई मार्ग बताएं। गुरु शिष्य को साथ ले तालाब पर आया। दोनों तालाब के अन्दर उतरे। गुरु शिष्य को तालाब में डुबोने लगा। शिष्य चिल्लाया-गुरुदेव ! में डूब रहा हूं ! गुरु ने उसका नाक और मुंह बन्द कर दिया। वह छटपटाने लगा। कुछ क्षण बाद गुरु ने शिष्य को पानी से बाहर निकाला। शिष्य बोला-गुरुदेव ! मैं आया था साधना का मार्ग जानने। आपने यह क्या किया ? गुरु ने मुस्कराते हुए कहा-वत्स! तुम्हारी कसौटी की है। शिष्य ने पूछा-गुरुदेव! यह क्या कसौटी है ? गुरु ने कहा-जब मैंने तुम्हारा नाक और मुंह बन्द किया तब कैसा लग रहा था ? शिष्य बोला--उस समय ऐसी छटपटाहट और अकुलाहट हुई कि मैं बता नहीं सकता। गुरु ने कहा-वत्स ! जिस दिन ऐसी अकुलाहट तुम्हारे मन में पैदा होगी, उस दिन साधना का मार्ग मिल जाएगा। संवाद दो परम्पराओं के बीच
इस प्रकार की अभीप्सा का जागना बहुत कठिन है। हजारों लोग प्रवचन सुनते हैं, सत्-साहित्य पढ़ते हैं, साधना के महत्त्व को जानते हैं पर उन सबमें अभीप्सा जागती नहीं है। विरल व्यक्तियों में ही यह अभीप्सा जागती है। भृगुपुत्रों के मन में ऐसी ही अभीप्सा जागी और वे विरक्त हो गए।
राजपुरोहित भृग और उनके पुत्रों के बीच लम्बा संवाद चला। संवाद केवल
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