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दो परंपराओं के बीच सीधा संवाद
के क्षेत्र में है उतना कहीं नहीं है। महावीर ने इस सचाई को उजागर किया। इन हजारों वर्षों में इस सत्य के सबसे प्रखर प्रवक्ता हुए हैं आचार्य भिक्षु । आचार्य भिक्षु ने हृदय परिवर्तन पर जितना बल दिया, इस संदर्भ में जितना लिखा है उतना किसी अन्य आचार्य ने लिखा है या नहीं, यह आज भी अन्वेषणीय है। आचार्य भिक्षु ने कहा- कोई किसी को बदल नहीं सकता। जब तक व्यक्ति का हृदय नहीं बदलता, परिवर्तन का होना संभव ही नहीं है।
परिवर्तन का पहला सूत्र है - हृदय परिवर्तन, अभीप्सा का जाग जाना । व्यक्ति के मन में यह अभीप्सा जाग जाए कि मुझे बदलना है। यह अभीप्सा की जागृति परिवर्तन का पहला आधार सूत्र है ।
अन्वेषण
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परिवर्तन का दूसरा हेतु है - अन्वेषण । जब अभीप्सा तीव्र बनती है, तब व्यक्ति अन्वेषण करता है। वह खोज करता है-- कैसे बदलूं ? बदलने का मार्ग क्या है ? हम आध्यात्मिक साहित्य को देखें। बौद्ध-धर्म, जैन-धर्म, झेन-सम्प्रदाय, जो जापान में चलता है, का इतिहास देखें । व्यक्ति गुरु की खोज में कहां-कहां गया ? कितने-कितने कष्ट सहे हैं - अन्वेषण शुरू होता है, आदमी भटकता रहता है, खोज चलती रहती है तो गुरु उपलब्ध हो जाता है। आचार्य भिक्षु ने भी अन्वेषण कम नहीं किया था । उन्होंने अन्वेषण किया, करते रहे और सत्य को उपलब्ध हो गए ।
मार्ग, सहाय और भावना
तीसरा हेतु है--मार्ग का उपलब्ध होना । जो खोजता है, उसे मार्ग मिल जाता हैं। जिसने खोजा है, उसने पाया है। जब मार्ग मिलता है, तब कोई सहायक भी मिल जाता है, गुरु भी मिल जाता है। सहायक वह हो, जिसकी मेधा सूक्ष्म हो, जो सूक्ष्म अर्थों को जानने वाला हो। ऐसे गुरु या सहायक की उपलब्धि परिवर्तन का चौथा हेतु
परिवर्तन का पांचवा हेतु है - भावना । भावना का अर्थ कोरा रटना नहीं है। सोचना, चिन्तन करना, पुनः पुनः आवृत्ति करना, इसका नाम है भावना । यह परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण हेतु है । दृढ़ निश्चय
परिवर्तन का छठा हेतु है--दृढ़ निश्चय । व्यक्ति में यह निश्चय जागे--मुझे बदलना है । यह चेतना जाग जाए - करूंगा या मरूंगा । बुद्ध ने निश्चय किया- जब तक बोधि नहीं मिलेगी, इस आसन से उदूंगा नहीं, चाहे शरीर सूख जाए। ऐसा दृढ़ निश्चय पैदा होता है, तब परिवर्तन घटित होता है।
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