________________
चांदनी भीतर की
यह परिवर्तन कैसे हुआ ? अब क्या किया जाए ? मुझे अपनी मान्यताओं के द्वारा ही इनके मानस को बदलना होगा।
राजपुरोहित बोला-'कुमारो! तुम मुनि बनना चाहते हो-पर जरा सोचो अभी तुम्हें अध्ययन करना है। हम ब्राह्मण हैं। हमारी अपनी एक परम्परा है। तुम उसके अनुसार चलो, वेदों को पढ़ो। ब्राह्मणों को भोजन कराओ, स्त्रियों का भोग करो। पुत्र उत्पन्न करो। वेदों को जानने वाले इस प्रकार कहते हैं कि जिसके पुत्र उत्पन्न नहीं होता, उसकी गति नहीं होती।
अह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं, तंवस्सवाघायकरं वयासी। इयं वयं वेयविओ वयति, जहा न होई असुयाण लोगो।। अहिज्ज वेए परिविस्सविप्पे, पुचे पडिट्ठप्प गिहसि जाया।
भोच्चाण भोए सह इत्थियाहिं आरण्णगा होइ मुणी पसत्था।। अभी तुम किशोर हो। जब तक युवा रहो, तब तक भोग भोगो। यह अवस्था भोग भोगने की है, मुनि बनने की नहीं। जब बूढ़े बनो, तब आरण्यक मुनि बन जाना। उत्तर भृगुपुत्रों का
पिता के ये तर्क पुत्रों को प्रभावित नहीं कर सके। उन्होंने कहा-'वेद पढ़ने पर भी त्राण नहीं होता और पुत्र भी त्राण नहीं देते। ये काम-भोग क्षण भर सुख और चिरकाल दुःख देने वाले हैं। ये संसार-मुक्ति के विरोधी हैं और अनर्थों की खान हैं। जिसे पुत्र, स्त्रियां, काम-भोग आदि कामनाओं से मुक्ति नहीं मिलती, वह अतृप्ति की अग्नि में संतप्त रहता है। दूसरों के लिए प्रमत्त होकर धन की खोज करता हुआ वह जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता रहता है'वेया अहीया न भवति ताणं,
भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेण। जाया य पुना य न हवति ताणं,
को णाम ते अणुमन्नेज्ज एवं॥ खणमेत सोक्खा बहुकालदुक्खा,
पगाम दुक्खा अणिगामसोक्खा। संसारमोक्खस्स विपक्खभूया,
खाणी अणत्थाण उ काम भोगा। परिव्वयंते अणियत्नकामे,
अहो य राओ परितप्पमाणे। अन्नप्पमन्ते धणमेसमाणे,
पप्पोत्ति मच्चु पुरिसे जरं च॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org