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दो परंपराओं के बीच सीधा संवाद
राजपुरोहित कुमारों के मानस को बदल नहीं पाया। उनकी चेतना बदल चुकी थी। हमारी चेतना या तो बदलती नहीं है और बदल जाती है तो उसे कोई रोक नहीं
सकता।
बदलाव : दो मार्ग
बदलने के दो मार्ग हैं-निसर्ग और अधिगम। आदमी ने पिछले जन्म में ऐसा ही कोई क्षयोपशम किया होता है कि वह एकदम बदल जाता है। न उपदेश, न मार्गदर्शन, न चर्चा, न वार्ता, कुछ भी नहीं होता, किन्तु आदमी बदल जाता है। यह नैसर्गिक बदलाव है। इसमें बाहरी प्रयत्न की जरूरत नहीं होती। दूसरा मार्ग है अधिगम का । ज्ञान, अभ्यास, पुरुषार्थ और प्रयत्न से बदलाव आता है। निसर्ग से बदलाव वाली घटना हजारों में एक या दो घटित होती है। इसे आपवादिक बात कह सकते हैं सामान्य मार्ग है अधिगम का। आदमी बदलता है और वह प्रयत्न से बदलता है। वह सहसा नहीं बदलता। एक क्रम और पद्धति-सापेक्ष होता है बदलाव। निसर्ग में कोई पद्धति नहीं होती। वह अपथ का पथ है। आकाश में कोई मार्ग नहीं बनता। भूमि पर पदचिह्न बनते हैं, मार्ग और पगडंडियां बनती हैं। परिवर्तन की पद्धति
परिवर्तन की एक पद्धति है और उस पद्धति को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है--
अभीप्सान्वेषणं मार्गः, सहायो भावना तथा।
दृढ़निश्चय इत्येते हेतवः परिवर्तने ।। परिवर्तन में ये छह तत्त्व हेतु बनते हैं१. अभीप्सा
४. सहाय २. अन्वेषण
५. भावना ३. मार्ग
६. दृढ़ निश्चय। अभीप्सा
परिवर्तन का पहला सूत्र है-अभीप्सा का जागना। व्यक्ति के मन में सबसे पहले यह अभीप्सा जाग जाए-मुझे बदलना है। जब तक यह अभीप्सा नहीं जागती, व्यक्ति को सम्मोहित किया जा सकता है, नींद की गोलियां देकर सुलाया जा सकता है, मूर्छा में लाया जा सकता है, पर बदला नहीं जा सकता। बदला तभी जा सकता है जब अभीप्सा जागे। आचार्य आदेश देकर कोई काम करवा सकते हैं पर बदल नहीं सकते। आचार्य यह आदेश दे सकते हैं--खड़े हो जाओ। विहार कर जाओ, अमुक स्थान पर
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