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दो परंपराओं के बीच सीधा संवाद
हुए हैं, किन्तु मनुष्य को बदलने के सूत्र अभी तक हाथ नहीं लगे हैं। दुनिया में यदि सबसे जटिल प्राणी कोई है तो वह है मनुष्य। मनुष्य का मस्तिष्क सबसे जटिल है। प्रश्न है धारणा का
प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक मान्यता या धारणा होती है। उसे चिरकाल से पोषण मिलता रहता है। यह सद्यः विलीन हो सकती है। ऐसा चिन्तन किसी समझदार व्यक्ति को नहीं करना चाहिए।
मान्यता धारणा यास्ति, चिरकालेन पोषिता।
सद्यः सा विलयं गच्छेद, नेति चिन्त्यं विचक्षणैः।। प्रत्येक व्यक्ति के मन में अपनी एक मान्यता होती है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो मान्यता बनाए न बैठा हो। ऐसे लोग, जो समझदार नहीं माने जाते, वे कहते हैं-मैं ऐसा मानता हूं, मेरी ऐसी मान्यता है। पहले मान्यता होती है, फिर धारणा बन जाती है। व्यक्ति उस बात को मजबूती के साथ पकड़ लेता है, छोड़ता नहीं है। जो चिरकाल से पोषित होती है, वह अस्थि और मज्जागत हो जाती है। संस्कार की समस्या
ज्ञातासूत्र का प्रसंग है। एक सेठ की लड़की की शादी करने के लिए भिखारी को लाया गया। वह विषकन्या थी। विषकन्या के साथ कौन शादी करता ! भिखारी तैयार हो गया। उसे स्नान करवा कर नए कपड़े पहनाए गए। उसके पास जो भिक्षा का पात्र था, उसे फेंकने लगे। भिखारी चिल्लाया-इसे मत फेंको। उसके साथ संस्कार जुड़ गया था। कर्मचारी बोले- अरे ! कैसी मूर्खता की बात करते हो ! सेठ अपनी कन्या का विवाह तुम्हारे साथ कर रहा है। वह तुम्हें प्रचुर धन देकर धनपति बना देगा। फिर भिक्षापात्र की जरूरत क्या रहेगी ? भिखारी इतना कहने पर भी शांत नहीं हुआ। उसका रोना चिल्लाना चलता रहा। सेठ उसकी चिल्लाहट को सुनकर वहां पहुंच गया। कर्मचारियों ने सेठ को सारी स्थिति से अवगत कराया। सेठ ने कहा-भिक्षापात्र को मत फेंको। उसे इसके पास ही रहने दो। इतने वर्षों से इस भिक्षापात्र के साथ जो गहरा संस्कार जुड़ा हुआ है, वह सहसा कैसे छूट सकता है ?
जिस भिखारी को अपार संपत्ति मिल रही थी, वह भी भिक्षापात्र को फोड़ना नहीं चाहता, छोड़ना नहीं चाहता। इस स्थिति में हमने जो मान्यताएं और धारणाएं बना रखी हैं, चिरकाल से जिन्हें पोषण मिल रहा हैं, वे सहसा कैसे टूट सकती है ? बहुत कठिन प्रश्न है परिवर्तन का। राजपुरोहित के तर्क
राजपुरोहित ने सोचा-चिरकाल से पोषित धारणाएं एकाएक कैसे टूट गई ?
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