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चांदनी भीतर की
अरणी की लकड़ी में आग नहीं होती। किन्तु दो अरणी की लकड़ियों का घर्षण करो, आग पैदा हो जायेगी।
क्या दूध में घी होता है ? 'नहीं।
दूध में घी नहीं होता। उसे जभाओ, तपाओ, मथो, घी निकल आएगा। तिल में तेल कहां होता है ? किन्तु उसको घाणी में पिसते ही तेल निकल आएगा। इस प्रकार इन भूतों में कोई आत्मा नहीं होती। ये पांच भूत मिलते हैं और भूतों का एक शरीर बन जाता है। वह एक दिन नष्ट हो जाता है। कोई भी आत्मा अमर नहीं है। शरीर के नष्ट होने के बाद उसका अस्तित्व नहीं रहता।'
जहा य अग्गी अरणी उसन्तो, खीरे घयं तेल्ल जहा तिलेसु।
एमेव जाया ! सरीरसि अत्ता, समुच्छई नासइ नावचिठे ।। पुत्र का उत्तर
पुत्र बोले-पिताजी ! आपने कैसे कहा कि आत्मा नहीं है ?' 'कहां है आत्मा ? यदि है तो दिखाओ ?'
पिताजी! आप इतने बुद्धिमान हैं, बहुत अनुभवी हैं। आप वृद्ध हैं, हम बच्चे हैं। फिर भी आप हमें झूठी बात सिखला रहे हैं। आप कहते हैं--आत्मा को दिखलाओ। आत्मा अमूर्त है। वह कैसे दिखाई देगी । क्या आप इस नियम को नहीं जानते--अमूर्त वस्तु इन्द्रिय-ग्राहय नहीं होती? ___अमूर्त वस्तु को इन्द्रियों के द्वारा देखा और जाना नहीं जा सकता। हमारी इन्द्रियों की शक्ति सीमित है। हम उससे आत्मा को कैसे देख पाएंगे ? किन्तु यह निश्चित है-आत्मा के आंतरिक दोष ही बंधन के हेतु हैं और बंधन संसार का हेतु
नो इन्द्रियगेज्म अमुत्त भावा, अमृत भावा वि य होइ निचं।
अज्झत्थहेउं निययस्स बंधो, संसारहेउ च पयन्ति बंध।। अटल निश्चय
आईस्टीन ने लिखा-हम वैज्ञानिक लोग अहंकार में चूर हो जाते हैं। हम इस बात को भूल जाते हैं हमारी ज्ञान की सीमा कितनी छोटी है। आखिर हम उन इन्द्रियों पर ही तो निर्भर हैं, जो न जाने कितनी बार हमें धोखा देती हैं।
भृगुपुत्र बोले--'पिताजी ! इन्द्रियों की सीमित शक्ति के आधार पर आप यह कह रहे हैं--आत्मा नहीं है। आपका यह कथन सही नहीं है। आप सत्य को अब झुठला नहीं सकते।
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