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जब सत्य को झुठलाया जाता है
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पिता ने सोचा-इतनी विद्या इनमें कहां से आ गई। ये आज आत्मा की बात कर रहे हैं। ये जो कह रहे हैं, वह वास्तव में सही है किन्तु इस सचाई को स्वीकार करूंगा तो मुनि बनने की आज्ञा देनी होगी।
राजपुरोहित राग के कारण सत्य को झुठलाने का प्रयत्न कर रहा था। जब-जब आदमी राग, द्वेष, क्रोध, भय आदि में उपयुक्त होता है तब-तब वह सत्य को झुठलाना चाहता है। वही व्यक्ति सत्य को स्वीकार कर सकता है, जो केवल ज्ञान में उपयुक्त है, शुद्ध चेतना में उपयुक्त है।
भृगुपुत्रों का निश्चय अटल था। वे सत्य का साक्षात् कर चुके थे। भृगु का प्रयत्न विफल हो गया। यह राग पर विराग की परम विजय थी। उसमें अनुगुजित था यह स्वर--सच्चं लोयम्मि सारभूयं।
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