________________
जब सत्य को झुठलाया जाता है
जाता है। जब एड्रीनल का अतिरिक्त स्राव होता है तब आदमी की शक्ति दस-बीस गुना अधिक बढ़ जाती है। उस स्थिति में 'भागो या लड़ो' की भावना प्रबल बनती
वृक्ष पर शरण
उन्होंने सोचा-इनसे लड़ नहीं सकते और भागकर भी कहां तक जा सकते हैं। दोनों भाई एक गहरे पेड़ पर चढ़ गये, उस पर छिपकर बैठ गये। पेड़ पर चढ़कर उन्होंने राहत की सांस ली। वे मुनि के आगे जाने की प्रतीक्षा करने लगे। नियति का ऐसा योग मिला--मुनि भी उसी पेड़ के नीचे विश्राम करने ठहर गए, जिस पर वे दोनों भाई बैठे थे। भूमि का प्रांजन किया। मुनि ने एक स्थान पर पात्र रख दिए
और ध्यान मुद्रा में खड़े हो गए। दोनों भाई भयभीत थे। मुनि की यह सामान्य चर्या होती है। वे प्रत्येक प्रवृत्ति के बाद निवृत्ति करते हैं। प्रत्येक प्रवृत्ति से निवृत्त हो कायोत्सर्ग करते हैं। यह एक परम्परा बन गई--प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ कायोत्सर्ग करे। यह शारीरिक और मानसिक-दोनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। मुनि ने ध्यान पूरा कर पात्रों को खोला। दोनों भाइयों ने सोचा--अब ये मुनि छुरी और कैंची निकाल रहे हैं। वे यह देखकर अवाक् रह गए-पात्र में छुरी-कैंची नहीं, रोटी और शाक था, पानी
और दूध था। मुनिजनों ने आहार किया, पानी से पात्र घोए और पात्रों को साफ कर पुनः झोली में रख दिया। मुनि आहार पानी से निवृत्त हो वहीं सुस्ताने लगे। पर्दा हट गया
बच्चों ने देखा--ये मुनि तो यहीं बैठे हैं। हम कब तक वृक्ष पर बैठे रहेंगे। आखिर नीचे उतरना ही होगा। डरने से क्या होगा ? जब तक डर न आये तब तक ही डरना चाहिए। डर के सामने आने पर तो उसका मुकाबला ही करना चाहिए।
दोनों भाई पेड़ से नीचे उतरे। मुनियों ने बालकों को देखा और बालकों ने मुनियों को। मुनिजी ने पूछा--'भाई ! कौन हो तुम ?'
बच्चों ने जवाब दिया--'हम इसी गांव के रहने वाले हैं, राजपुरोहित भृगु के पुत्र हैं। तुम कौन हो ?'
__ 'भाई ! हम साधु हैं।' ___'क्या करते हो तुम ? क्या तुम बच्चों को पकड़ते हो। उन्हें भगाकर ले जाते
हो!'
'यह तुम कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो। किसने बताया है यह सब तुम्हें।' 'हमारे पिताजी ने।'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org