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________________ ३६ जब सत्य को झुठलाया जाता है वैज्ञानिक हैं, वे उस बदलाव को पकड़ लेते हैं। सूर्य के भी दस वर्ष का एक चक्र होता है। उस चक्र के आधार पर बदलाव को पकड़ा जाता है। प्रतिदिन होने वाला बदलाव हमारी पकड़ में नहीं आता। प्रातःकाल सूर्योदय होते ही वातावरण में एक बदलाव आता है। ज्यों-ज्यों दिन चढ़ता है, वातावरण बदलता जाता है। दो तीन घण्टे बाद वातावरण एकदम बदल जाता है। एक एक मिनट में बदलाव आता है पर हम उसे पकड़ नहीं पाते। वह सूक्ष्म होता है। बदलाव को पकड़ें हम व्यक्ति की मनःस्थिति को देखें। वह कब एकरूप रहती है। यदि हम एक दिन कागज पेंसिल लेकर बैठे और दिन भर बदलने वाले मूड को अंकित करते चलें तो पूरा पृष्ठ मूड परिवर्तन की घटनाओं से भर जाएगा। संभव है एक पूरी कॉपी भर जाए। हमारा मूड अपने आप भी बदलता है और बाहरी निमित्तों के कारण भी बदलता है। हमारी भावधारा बदलती रहती है, हमारे हाव-भाव और मुद्राएं बदलती रहती हैं। केवल अन्तर्मन नहीं बदलता। एक आदमी किसी आकृति को एक दिन तक पढ़ता रहे, तो उसे लगेगा-आकृति में कितने बदलाव आए हैं-कभी प्रसन्न आकृति और कभी विषण्ण । कभी खुश और कभी नाराज । कभी हंसमुख और कभी चिन्तातुर । कभी सिर पर हाथ धरे बैठा है और कभी उल्लास के क्षण में। आदमी क्षण-क्षण में बदलता है। आदमी कुछ होता है और कुछ बन जाता है। हम उस बदलाव को पकड़ें। जब औदयिक भावों का परिवर्तन होता है तब आदमी असत्य में चला जाता है। जब बदलाव नहीं, ठहराव आता है, उत्पाद व्यय से मुक्त होकर धौव्य की अवस्था में चला जाता है। जब औदयिक भाव से मुक्त होकर पारिणामिक भाव में आता है तब जो स्थिति बनती है, उसमें सत्य बलवान् होता है। देवता की चिन्ता आचार्य ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुये एक उदाहरण प्रस्तुत किया। दो देवताओं के देवलोक से च्युत होकर धरती पर आने का समय निकट आ गया। उनकी मालाएं कुम्हलाने लग गई, चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई। देवताओं ने देखा-यह क्या हो रहा है ? माला क्यों कुम्हला रही है ? चेहरे पर झुर्रियां क्यों आ रही हैं ? वे गहराई में उतरे, रहस्य समझ में आ गया--माला कुम्हलाना और बुढ़ापा उतरना मौत का पूर्व संकेत है। देवताओं की माला सदा पुष्पित रहती है, उनका चेहरा सदा तरोताजा रहता है। जब देवलोक से च्युत होने का समय निकट आता है तब माला कुम्हलाने लगती है, चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लग जाती हैं। देवता चिन्तित हो उठे। उन्होंने देखा कहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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