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चांदनी गीतर की
आदमी झूठ बोलना नहीं चाहता, मिथ्या आचरण करना नहीं चाहता, सिद्धान्त और दाणी का असत्य भी नहीं चाहता किन्तु जब ये चार आवेश प्रबल होते हैं, तब सचाई नीचे चली जाती है, असत्य उभर कर सामने आ जाता है। असत्य बोलने के कारण __दर्शन शास्त्र में आप्त पुरुष की बहुत चर्चा हुई है। कहा गया-जो आगम हैं, दे प्रमाण हैं। प्रश्न आया-आगम प्रमाण है, इसका क्या प्रमाण है? कहा गया--आगम आप्त की वाणी है और आप्त कभी झूठ नहीं बोलता । झूठ बोलने के तीन कारण-राग, द्वेष और मोह । व्यक्ति इन तीन कारणों से झूठ बोलता है। जिसमें ये तीनों दोष नहीं होते, वह झूठ क्यों बोलेगा ?
रागाद् वा द्वेषाद् वा मोहाद् वा यद् वाक्यमुच्यते यनृतम्।
यस्य तु नैते दोषाः तस्यानृत कारणं किं स्यात्।। जिसमें मोह नहीं है, राग और द्वेष नहीं है, वह सत्य ही बोलेगा। वह अयथार्थ को ग्रहण नहीं करता, यथार्थ को ही ग्रहण करता है इसलिए यथार्थ ही कहेगा। उसमें केवल ज्ञान का उपयोग होता है। ___जीव का लक्षण है उपयोग आत्मा । क्रोधोपयोग जीव का लक्षण नहीं है, मानोपयोग जीव का लक्षण नहीं है। जीव का लक्षण है केवल उपयोग, शुद्ध उपयोग ! जब जीव अपने लक्षण से लांछित या चिह्नित होता है, उस क्षण में सब सत्य ही सत्य होता है, किन्तु जब उपयोग के पीछे कोई विशेषण जुड़ता है, क्रोध, मान, माया, लोभ, भय, हास्य आदि का योग होता है तब सत्य गौण हो जाता है, असत्य बलवान हो जाता
बदलाव का चक्र
जीवन में बदलाव का एक चक्र चल रहा है। प्रत्येक व्यक्ति बदलता है। वह प्रतिदिन और प्रतिक्षण बदलता है। वह इतना बदलता है, फिर भी हम कभी कभी ही उस बदलाव को पकड़ पाते हैं। अवस्था में आने वाला बदलाव भी रोज नहीं पकड़ा जाता। एक शिशु दस वर्ष का होता है तब बदलाव का पता चलता है। हम सोचते हैं शिशु किशोर हो गया, दूसरी अवस्था में चला गया। जब बीस वर्ष के आस-पास पहुंचता है तब एक और बदलाव की बात सामने आती है। जब पचास वर्ष का होता है तब वह प्रौढ़ बनता है। इन बदलावों के आधार पर जैन आचार्यों ने सौ वर्ष की आयु को दस अवस्थाओं में बांट दिया। दस-दस वर्ष की एक अवस्था। सौ वर्ष जीने वाला व्यक्ति दस अवस्थाओं को भोग लेता है। सूर्य में भी बदलाव आता है। जो सौर
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