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________________ जब सत्य को झुठलाया जाता है जब-जब जिज्ञासा प्रबल होती है तब-तब किसी का द्वारा खटखटाना होता है। जिसने दरवाजा खटखटाया है, उसने समाधान पाया है। जो बैठा रहता है, वह समाहित नहीं हो पाता। शिष्य जिज्ञासा को लेकर आचार्य की सन्निधि में पहुंचा। आचार्य ने पूछा-वत्स! कैसे आए हो? भंते ! मन में एक जिज्ञासा है। उसका समाधान पाने आया हूं। क्या जिज्ञासा है तुम्हारी ? भंते ! सत्य बलवान होता है या भाव-विप्लव। भाव का परिवर्तन होता रहता है। कभी एक भाव आता है और कभी दूसरा भाव आ जाता है, यह भाव का विप्लव बलवान् है या सत्य ? वत्स ! जब ज्ञान का उपयोग होता है तब सत्य बलवान् होता है। जब क्रोध, लोभ, मोह आदि का उपयोग होता है तब भाव-विप्लव बलवान होता है। सत्यं बलयुतं यद् वा, बलवान भावविप्लवः। ___ ज्ञानोपयोगे सत्यं स्याद्, अन्यो मोहचिदःक्षणे।। सुन्दर परिभाषा आचार्य ने सत्य की थोड़े शब्दों में बहुत सुन्दर परिभाषा दी है। सत्य है ज्ञान का उपयोग। असत्य है भाव का विप्लव। यह सत्य और असत्य को परखने की बहुत बड़ी कसौटी है। जब-जब ज्ञान का केवल उपयोग होता है, उसके साथ कोई मिश्रण नहीं होता तब-तब सत्य बलवान होता है। जब वह क्रोध युक्त, मान युक्त, माया और लोभ युक्त होता है तब-तब असत्य बलवान हो जाता है। भगवती सूत्र में कहा गया है--जब व्यक्ति क्रोध, मान, माया और लोभ से उपयुक्त होता है, जिस क्षण में इन औदयिक भावों का आवेश हमारी चेतना में प्रबल बनता है, उस समय असत्य बलवान् बन जाता है। असत्य की उत्पत्ति के चार कारण बतलाए गए हैं-क्रोध, लोभ, भय और हास्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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