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________________ यज्ञ, तीर्थ स्थान आदि का आध्यात्मिकीकरण सामयिक प्रस्ताव बहुत वर्ष पहले आचार्यवर का चातुर्मास उदयपुर में था। उस समय डा. कमल चंद सौगानी ने एक पत्र लिखा, उसमें दो मांगें प्रस्तुत की। उनका एक प्रस्ताव था--संस्कृत साहित्य का जो इतिहास लिखा गया है, उसमें जैनों का प्राधान्य नहीं रहा है। सारा संस्कृत काव्य मुख्यतः अन्य परम्परा का या लौकिक परम्परा का रहा है। जैन संस्कृत काव्यों का स्थान बहुत गौण रहा है इसलिए संस्कृत साहित्य का इतिहास किसी जैन विद्वान् द्वारा लिखा जाना चाहिए। उनका अनुरोध मेरे लिए था, आज भी वह पत्र हमारे पास सुरक्षित है। उनकी भावना सुरक्षित है किन्तु कार्य नहीं हो सका। योगक्षेम वर्ष में एक बहुत अच्छा सुझाव आया--जैन आचार्य अनेकान्तवाद को मानते हुए भी दूसरे-दूसरे दर्शनों का खण्डन करते रहे। इस योगक्षेम वर्ष में एक ऐसा ग्रन्थ तेयार होना चाहिए, जिसमें सब दर्शनों का स्पर्श हो, चर्चा हो पर खण्डन किसी का न हो। सब दर्शनों का नय दृष्टि से समन्वय साधा जाए। ऐसा कोई ग्रन्थ प्रस्तुत होना चाहिए, जिसमें सबका समन्वय हो। कौन सा विचार किस नय से प्रतिपादित है और वह किस नय से हमें मान्य है ? सारे विचारों के समन्वय से जैन दर्शन का एक नया ग्रन्थ बन जाए और वह सबके लिए ग्राह्य हो जाए, यह अपेक्षित है। सापेक्षता का दृष्टिकोण ____ 'यदि सब विचारों को अलग-अलग कर दिया जाए, उन्हें निरपेक्ष बना दिया जाए तो सब विचार मिथ्या हो जाएंगे। यदि उन सारे विचारों को मिला दिया जाए, सापेक्ष बना दिया जाए वे सारे विचार सम्यक् बन जाएंगे।' आचार्य सिद्धसेन के इस दृष्टिकोण का अर्थ निकाला गया--मिथ्यादृष्टीनां समूहो जैनदर्शनम्-सारे मिथ्या दृष्टिकोणों के समूह का नाम है जैन दर्शन । प्रश्न प्रस्तुत हुआ-- अनेक बुराइयां हैं, उन सारी बुराइयों को मिला देने से एक अच्छाई केसे बन जाएगी ? सारे गलत दृष्टिकोणों को मिला देने से जैन दर्शन कैसे बन जाएगा ? यह बात बड़ी अटपटी लगती है किन्तु इसमें सचाई है। हम सब विचारों को मिलाएं या नहीं, किन्तु उन्हें स्वीकार कर लें। ___ मध्ययुग में जो अस्वीकार करने की दृष्टि का विकास हुआ, उससे खण्डन की परम्परा को बल मिला । वस्तुतः कोई दृष्टिकोण गलत नहीं है। संग्रह नय कहता है-- सब एक हैं। वेदान्त में कहा गया-ब्रह्म एक है। अन्तर कहां रहा ? ब्रह्म एक है किन्तु उससे आगे जब विचार का दरवाजा बंद होता है तब अन्तर प्रस्तुत हो जाता है। विचार का दरवाजा बाहर से बंद न करें, दूसरे के विचारों को भी भीतर आने दें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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