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यज्ञ, तीर्थ स्थान आदि का आध्यात्मिकीकरण
विकास बाद में हुआ है। मीमांसक दर्शन ने मोक्ष को स्वीकार किया, उसे जीवन का परम लक्ष्य माना, किन्तु उसका मुख्य उद्देश्य स्वर्ग की प्राप्ति का रहा। प्रश्न था-- -स्वर्ग की प्राप्ति कैसे हो ? नरक कैसे टले ? कहा गया - स्वर्ग के लिए यह करना चाहिए। प्रवर्तक धर्म में कर्म की प्रधानता होती है । निवर्तक धर्म में ज्ञान की प्रधानता होती है। मीमांसा दर्शन के प्रमुख आचार्य प्रभाकर कर्मवादी हैं। उनकी दृष्टि में कर्म प्रधान है, ज्ञान गौण । वे ज्ञान को स्वतन्त्र नहीं मानते। आचार्य शंकर ज्ञानवादी हैं। उनकी दृष्टि में ज्ञान का मूल्य अधिक हैं, कर्म का मूल्य नगण्य है। कर्म ज्ञान का ही अंग है। कुमारिल भट्ट ज्ञान और कर्म दोनों को स्वीकार करते हैं। मीमांसा के इन तीन आचार्यो की तीन प्रकार की चिन्तनधाराएं रही हैं। यज्ञ आदि का सबसे ज्यादा समर्थन आचार्य प्रभाकर ने किया। मीमांसा के पूर्वपक्ष में यज्ञ का समर्थन और विधान है, इसलिए मीमांसा का पूर्वपक्ष कर्मकाण्ड कहलाता है। उत्तरपक्ष में यज्ञ आदि का समर्थन नहीं किया गया। वह ज्ञानकाण्ड कहलाता है।
यज्ञ क्यों ?
एक मत रहा--यज्ञ करने से आदमी स्वर्ग में चला जाता है। इस मत का समर्थन करने वाले व्यक्तियों का यज्ञ परम धर्म बन गया। स्थान-स्थान पर यज्ञ के बड़े-बड़े समारोह होने लगे। आयोजन में हजारों व्यक्ति सम्मिलित होते। यज्ञ की परम्परा विस्तार पाती चली गई। जब भगवान् महावीर को कैवल्य उपलब्ध हुआ तब इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह दिग्गज विद्वान् यज्ञ के निमित्त ही आ रहे थे। एक ही यज्ञ के लिए ग्यारह महापंडित आए । प्रत्येक पंडित के पांच सौ शिष्य थे। उस समय हजारों लोग उस यज्ञ में उपस्थित थे। भगवान् महावीर का योग मिला, ग्यारह पंडितों की दिशा बदल गई । वे यज्ञ कर्म से निवृत्ति पा भगवान् महावीर के शिष्य बन गए। श्रेष्ठ याज्ञिक कौन ?
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आस्तिकता का एक लक्षण है, इष्टसिद्धि और अनिष्ट निवारण की अभीप्सा । आदभी पाप से बचना चाहता है। वह उसके लिए विभिन्न अनुष्ठान करता है। मुनि हरिकेशबल ने याज्ञिक ब्राह्मणों से कहा अग्नि का समारम्भ करते हुए जल शुद्धि की मांग कर रहे हो ? तुम जिस शुद्धि की बाहर से मांग कर रहे हो, उसे कुशल लोग सुदृष्ट-- सम्यग् दर्शन नहीं कहते ।
किं माहणा जोइ समारभन्ता, उदएण सोहिं बहिया विगहा ? जं मग्गहा बाहिरियं विसोहि, न तं सुदिट्ठे कुसला वयन्ति ।। मुनि ने कहा- तुम अग्नि का समारम्भ कर प्राणों और भूतों की हिंसा करते
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