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चांदनी भीतर की
हुए बार बार पाप करते हो। जहां अग्नि का समारम्भ है, वहां हिसा है। हिंसा के साथ पाप कर्म का बन्धन जुड़ा हुआ है।
ब्राह्मण ने पूछा- हे भिक्षो ! हम कैसे प्रवृत्त हों ? यज्ञ कैसे करें ? जिससे पाप कर्मों का नाश कर सकें ? आप हमें बताये--कुशल पुरुषों ने सुइष्ट--श्रेष्ठ यज्ञ का विधान किस प्रकार किया है?
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कहं चरे ? भिक्खु ! वयं जयामो ? पावाइ कम्माइ पणोल्लयामो ? अक्खाहि णे संजय ? जक्खपूइया ! कहं सुजट्ठ कुसला वयन्ति ? मुनि हरिकेशबल ने इस प्रश्न का बहुत मार्मिक उत्तर देते हुए कहा- जो पांच संवरों से संसुवृत होता है, जो असंयम जीवन की इच्छा नहीं करता, जो काय का व्युत्सर्ग करता है, जो शुचि है और जो देह का त्याग करता है, वह महाजयी श्रेष्ठ यज्ञ करता है।
सुसंवुडो पंचहि संवरेहिं इह जीवियं अणवकंखमाणो । वोसट्टकाओ सुइचत्तदेहो, महाजयं जयई जन्नसिट्ठ ।। यज्ञ और तीर्थ स्थान : आध्यात्मिक दृष्टि
ब्राह्मण सोमदेव की जिज्ञासा का स्रोत फूट पड़ा। उसने पूछा- भिक्षों ! तुम्हारी ज्योति कौन सी है ?
मुनि बोले तप है ज्योति ।
तुम्हारा ज्योति-स्थान ( अग्नि स्थान) कौन सा है ?
जीव ज्योति स्थान है ।
तुम्हारे घी डालने वाली करछियां कौन सी हैं ?
योग : मन, वचन और शरीर की सत् प्रवृत्ति घी डालने की करछियां है।
तुम्हारे अग्नि जलाने के कण्डे कौन से हैं ?
शरीर अग्नि जलाने के कण्डे हैं।
ईंधन कौन सा है ?
कर्म है ईंधन
और शांति पाठ
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संयम ।
तुम किस होम से ज्योति को प्रीणित करते हो ?
ऋषि प्रशस्त अहिंसक होम से।
तुम्हारा जलाशय कौन सा है ?
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