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जातिवाद तात्त्विक नहीं है पह सोने की चौकी दक्षिणा में प्रदान करता हूं। पंडितजी यह सुन विस्मित रह गए। तालियां बज उठीं। सेठ की जय जयकार होने लगी। अहंकार से भरे हुए सेठ ने आगे कहा-पडितजी आज तक कोई इतना दानी मिला? पंडितजी त्यागी थे। सेठ के कथन से उनका मानस आहत हुआ। उन्होंने सोचा-मैं सोने की चौकी ले सकता हूं किन्तु उसके साथ यह अहंकार का भार नहीं उठा सकता। पंडितजी ने जेब में हाथ डाला, एक रुपया निकाला। उस रुपए को चौकी पर रखते हुए पंडितजी बोले--सेठ जी! इस रुपये के साथ मैं आपकी चौकी आपको लौटा रहा हूं। पंडितजी ने आगे कहा--सेट जी! क्या आपको आज तक इतना बड़ा त्यागी मिला? सेठ यह सुनकर स्तब्ध रह गया। उसका सारा खून पानी बन गया और अहंकार का उत्ताप त्याग की शीतलता से ठंडा हो गया। समता की चेतना प्रबल बने
अहंकार की पराजय हमेशा त्याग के द्वारा होती है। धन के द्वारा कभी अहंकार की पराजय नहीं होती। सत्ता और शक्ति के द्वारा कभी अहंकार को हराया नहीं जा पकता। जब समत्व, त्याग और तपस्या का विकास होता है, अहंकार विलीन होता दला जाता है! जातिवाद के उस युग में भगवान महावीर और बुद्ध ने समता की वेतना के विकास पर बल दिया। समता का विकास प्रबल बना, जातिवाद की पकड़ कमजोर होने लगी। जातिवाद का जो एकछत्र साम्राज्य था, उसकी जड़े हिलने लग गई। अगर महावीर और बुद्ध ने इस दिशा में प्रयत्न न किया होता तो आज न जाने हेन्दुस्तान की क्या दशा होती ? आज भी हिन्दुस्तान की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अनेक तीन प्रयत्नों के बावजूद, हिन्दुस्तान को जातिवाद के बुरे परिणाम भुगतने पड़े। हम आज भी उसके परिणाम भुगत रहे हैं। जातिवाद की काली छाया आज भी वेद्यमान है। मनुष्य का अहंकार आज भी समस्या का कारण बना हुआ है। अहंकार के द्वारा उसे मिटाया नहीं जा सकता। आप जीते, मैं हारा
राजा दशार्णभद्र ने महावीर की वन्दना के लिए प्रस्थान किया। उसके साथ अपार सेना थी, वैभव था। इन्द्र को यह अहंकार-प्रदर्शन अनुचित लगा। इन्द्र ने इशार्णभद्र को पराजित करने के लिए अपार वैभव और शक्ति का प्रदर्शन किया। इशार्णभद्र के अहंकार को चोट पहुंची। उसने सोचा-वैभव और शक्ति से मैं इन्द्र को पराजित नहीं कर सकता। उसने तत्काल एक निश्चय किया और महावीर को वन्दना कर बोला--भगवन् ! आप मुझे दीक्षित करने की कृपा करें। भगवान ने दशार्णभद्र को
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