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________________ जातिवाद तात्त्विक नहीं है नहीं है। जो तिब्बत था, वह भी छूट गया। कुछेक हजार लोग भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। वे हिन्दुस्तान की सहानुभूति पर जी रहे हैं। इस संदर्भ में दलाईलामा के साथ जो बातचीत का प्रस्ताव किया है, उसका महत्त्व बढ़ जाता है। प्रश्न होता हे-ऐसा क्यों किया गया ? प्राचीन काल में ऐसा होना संभव नहीं था । शक्तिशाली है मानवाधिकार का प्रश्न आज मानवाधिकार का प्रश्न बहुत शक्तिशाली बन गया है । स्वतन्त्रता मानव का अधिकार है, शिक्षा मानव का अधिकार है, रोजगार मानव का अधिकार है। मानवाधिकार की जो आज व्याख्या हुई है, उस आधार पर अनेक मानवीय समस्याएं सुलझ रही हैं। कोई भी राष्ट्र चाहे कितना ही शक्तिशाली हो, वह मानवाधिकारों का मनचाहा अतिक्रमण नहीं कर सकता। पंजाब की समस्या को लेकर अमेरिकी सीनेट के सदस्य ने मानवाधिकार का प्रश्न उठाया तो भारत को भी सावधान होना पड़ा। कहा गया-- हिन्दुस्तान को दी जाने वाली सहायता बन्द होनी चाहिए क्योंकि पंजाब में हिन्दुस्तान की सरकार मानवाधिकारों का अतिक्रमण कर रही है। आज एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न बन गया है मानवाधिकार । एक आदमी दूसरे आदमी को घृणित माने, जातिभेद के कारण, रंगभेद के कारण या किसी अन्य सामाजिक कारण से व्यक्ति के अधिकार छीन लिए जाएं, क्या यह मानवाधिकार का अतिक्रमण नहीं है ? आज यह बहुत स्पष्ट है । यह अतिक्रमण पहले भी चलता था, आज भी चलता है । प्रश्न भी होता है - यह क्यों चलता है ? इसके पीछे जो प्रेरणा है, वह बुद्धि की नहीं है । वह प्रेरणा है अहंकार की । अतिक्रमण की पृष्ठभूमि में मनुष्य का अहंकार काम कर रहा है और इसका जीवित निदर्शन है हरिकेश मुनि का आख्यान । त्याग की विजय : अहंकार की पराजय ५ हरिकेश मुनि जाति से चाण्डाल थे। बड़े तपस्वी थे । वे एक-एक मास का तप कर रहे थे। पारणे के दिन वे भिक्षा के लिए घूमते-घूमते एक यज्ञ मंडप के पास पहुंचे। यज्ञ का अनुष्ठान चल रहा था। बड़े-बड़े पंडित, पुरोहित, उपाध्याय और छात्र उस यज्ञ में लगे हुए थे। मुनि यज्ञशाला के पास खड़े हो गए। यज्ञ में उपस्थित ब्राह्मण कुमारों ने मुनि को देखा। वे मुनि की वेशभूषा को देखकर उनका उपहास करने लगे । मुनि के शरीर पर पूरे वस्त्र नहीं थे। उनके विचित्र रूप को देखकर ब्राह्मणों ने पूछा-तुम कौन हो मैं भिक्षु हूं। यहां क्यों आए हो ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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