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________________ चांदनी भीतर की को उभार देता है। उच्च वर्ग और निम्न वर्ग की जाति एक है पर उनमें वर्गगत अन्तर परिलक्षित होता है। उच्च वर्ग का अहंकार नीच वर्ग को अपना रूप बताना चाहता है, अपने धन-वैभव का प्रदर्शन करना चाहता है। इस वर्ग भेद से अहंकार का एक और विभाग हो गया। किसी व्यक्ति को सत्ता मिली, अहंकार बढ़ गया। अहंकार की अभिव्यक्ति का एक माध्यम विकसित हो गया। कुर्सी छूटी, अहंकार गल गया। धन मिला, अहंकार बढ़ गया, धन चला गया , अहंकार दब गया। यह सारा अहंकार का मायाजाल है। इसमें हमारी बुद्धि काम नहीं देती। हमारी बुद्धि, हमारे तर्क, हमारी मान्यताएं वहां जाती हैं जहां हमारी वृत्तियां उन्हें ले जाती हैं। अभिनिवेश मान्यता का संस्कृत का एक प्रसिद्ध श्लोक है : आग्रही बत! निनीपति युक्तिः, यत्र तत्र मतिरस्य निविष्टा। पक्षपातरहितस्य तु युक्तिः यत्र तत्र मतिरेति निवेशम् । आग्रही व्यक्ति तर्क का प्रयोग करता है और पक्षपात रहित व्यक्ति भी तर्क का प्रयोग करता है। दोनों तर्क का प्रयोग करते हैं किन्तु एक व्यक्ति, जिसमें मान्यता का एक अभिनिवेश बन गया, पकड़ हो गई । वह सोचता है--मुझे इसी बात का समर्थन करना है। उसकी जो मान्यता या मति बन जाती है, वह उसके समर्थन में ही तर्क खोजता है। जो व्यक्ति पक्षपात रहित है, वह व्यक्ति जहां युक्ति है वहां अपनी मति का प्रयोग करेगा। वह एक न्यायपूर्ण मान्यता के साथ अपनी तर्क-शक्ति को नियोजित करेगा। एक आग्रही व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। उसके सामने उसकी पकड़ मुख्य होती है। वह न्याय या औचित्य को नहीं देखता। उपाध्याय यशोविजय जी ने आग्रह के संदर्भ में अत्यंत मार्मिक दृष्टान्त दिया मनोवत्सो युक्तिगवी, मध्यस्थस्यानुघावाति। तामाकर्षति पुच्छेन, तुच्छाग्रहमनःकपिः।। प्रश्न मानवीय अधिकार का बुद्धि, न्याय और अधिकार के आधार पर जातिवाद का समर्थन नहीं किया जा सकता। दो प्रकार के अधिकार माने जाते हैं-कानूनी अधिकार और नैतिक अधिकार । इन मानवीय अधिकारों को इस युग में बहुत महत्त्व मिला है, सारे राष्ट्र चौकन्ने हो जाते हैं। समाचार पत्रों में पढ़ा-चीन ने तिब्बत के सन्दर्भ में दलाईलामा से बातचीत का प्रस्ताव रखा है। चीन के पास विशाल साम्राज्य शक्ति है, दलाईलामा के पास कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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