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गतिवाद तात्त्विक नहीं है
शों में जातियां नहीं हैं ? यह सोचना भी शायद सार्थक नहीं है। अहंकार को प्रकट करने का रास्ता एक ही नहीं होता। उसकी अभिव्यक्ति के अनेक रास्ते हैं। अहंकार को जो माध्यम मिलता है, वह उसे अपना लेता है। अभिव्यक्ति के आधार पर हमारे प्राचार्यों ने अहंकार को आठ भागों में विभक्त किया है--
१. जाति का अहंकार। ५. रूप का अहंकार। २. कुल का अहंकार। ६. तप का अहंकार ३. बल का अहंकार। ७. श्रुत का अहंकार। ४. लाभ का अहंकार। ८. ऐश्वर्य का अहंकार!
अहंकार के ये आठ ही नहीं, अनेक विभाग हो सकते हैं! वस्तुतः अहंकार एक ही है, उसकी प्रणालियां अलग-अलग हो गई। एक ही गंगा से नहर निकतों, एक ही पमुना से नहरें निकलीं, कोई भाखड़ा नहर बन गई, कोई गंगानहर बन गई। नाम अलग-अलग हो गए। उनमें सारा पानी गंगोत्री और यमुनोत्री से आ रहा है। वह नहरों और नालियों के माध्यम से अनेक रूपों में प्रवाहित होता है। इस प्रकार मूल में एक ही अहंकार काम कर रहा है और वह अहंकार ही अनेक रूपों में बंट जाता
आयुर्वेद का सिद्धांत है- व्यक्ति को बीमारी का दर्द होता है। दर्द दर्द है, बीमारी बीमारी है। घुटनों में दर्द होता है तो कहा जाता है--घुटने में दर्द हो गया। कमर में दर्द होता है तो कहा जाता है-कमर का दर्द हो गया। दर्द आखिर दर्द ही है। केवल स्थान भेद से नाम भेद हो गया।। अहंकार अहंकार है, अभिव्यक्ति के से उसके अनेक रूप बन जाते हैं। जाति, रंग और वर्ण
हिन्दुस्तान में जाति का अहंकार प्रबल बना। कहीं ग का अहंकार प्रबल है। गरे लोगों का अहंकार काले लोगों पर कहर ढा रहा है। दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद के आधार पर यहां तक नियम बना दिए गए-जिस सड़क से गोरा आदमी जाता है, उस सड़क से काला आदमी नहीं जा सकता। काला आदमी अमुक-अमुक पथों में नहीं जा सकता। गोरे व्यक्ति पर उसकी छाया भी नहीं पड़नी चाहिए। जिस वायुयान ३ या रेल के डिब्बे में गोरे आदमी बैठते हैं, उसमें काले आदमी नहीं बैठ सकते। आज भी रंगभेद काफी तीव्र बना हुआ है। अहंकार कभी जातिभेद के रूप में प्रकट हो गया, कभी रंगभेद के रूप में प्रकट हो गया और कभी वर्ग भेद के रूप में अभिव्यक्त हो गया। एक ओर उच्चवर्ग है, दूसरी ओर निम्न वर्ग है। उच्चवर्ग का अहंकार वर्गभेद
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