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असहयोग का नया प्रयोग अभियान महावीर के समय ही नहीं चला, उससे बहुत पहले प्रारंभ हो चुका था। अरिष्टनेमि का प्रसंग इसका स्वयंभू साक्ष्य है।
अरिष्टनेमि ने उस समय जो कार्य किया, उसे आज की भाषा में सविनय अवज्ञा आंदोलन या सविनय असहयोग कहा जा सकता है। अरिष्टनेमि ने कहा-मैं विवाह नहीं करूंगा। सत्याग्रह : असहयोग
अरिष्टनेमि विवाह करने के लिए गए थे और विवाह करने से अस्वीकार कर दिया। यह असहयोग आंदोलन का उदात्त रूप था। प्राचीन काल में ऐसी अनेक घटनाएं घटी हैं, जिनमें उदण्डता के साथ नहीं किन्तु सविनय असहयोग किया गया। वे उस घटना के साथ नहीं जुड़ते, जिससे सहमत नहीं होते। मैं यह नहीं करूंगा यह निश्चय कर लेते। उनमें अस्वीकार की शक्ति प्रबल थी। जो व्यक्ति अकेला जीना जानता है, अकेला रहना जानता है, स्वयं में आनंद को खोज लेता है, उसे असहयोग करने में कोई कठिनाई नहीं होती। जिसके मन में कोई चाह और आकांक्षा नहीं होती, जो अपने आप में संतुष्ट है, वह असहयोग कर सकता है। अरिष्टनेमि ने सचमुच असहयोग किया। दूसरे शब्दों में इसे सत्याग्रह कहा जा सकता है। सत्याग्रह और असहयोग-ये दो गांधी युग के विशेष शब्द हैं, पर इनका प्रयोग अतीत में भी हो चुका है। ___ अरिष्टनेमि ने रथ को मोड़ने का आदेश किया। रथ विवाह मण्डप की ओर न जाकर दूसरी दिशा में मुड़ गया। यह देख सब अवाक् रह गए। अनेक लोगों ने अरिष्टनेमि से कहा-आप इस प्रकार न मुड़ें। ऐसा करना ठीक नहीं है। अरिष्टनेमि अपने निश्चय पर अटल रहे। श्रीकृष्ण, वासुदेव आदि के आग्रह को भी अरिष्टनेमि ने अस्वीकार कर दिया। राजीमती की चीख भी उनके निश्चय को नहीं बदल सकी। बहुमत का अर्थ
अरिष्टनेमि ने पुनः मुड़कर नहीं देखा। उनके मन में यह भाव जाग गया-मेरे कारण कितने प्राणी पीड़ित और दुःखी हो रहे हैं। मैं किसी को सताना नहीं चाहता, दुःखी और पीड़ित नहीं करना चाहता। मैं यह सब नहीं देख सकता। मुझे अपने आप में रहना है, अकेले में रहना है। वे सचमुच अकेले बन गए। जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है, उसे अकेला रहना या चलना स्वीकार करना होता है। महावीर हो, अरिष्टेनेमि या गांधी, अहिंसा की आस्था वाले व्यक्ति को अकेले चलना होता है। जो बहुमत की बात देखेगा, वह कभी ऐसा नहीं कर पाएगा। वह सोचेगा-अमुक व्यक्ति
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