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________________ १७६ चांदनी भीतर की क्या कर रहा है ? शायद इसीलिए गांधी जी ने कहा था--बहुमत का अर्थ है नास्तिकता। अल्पमत में होना कोई बुरी बात नहीं है। जो सत्य में चलेगा, उसे सदा अल्पमत में चलना पड़ेगा। बहुमत सदा दूसरे प्रकार का होता है। सत्य के साथ कभी बहुमत जुड़ता नहीं है। शायद यही कारण रहा-महावीर के साथ बहुत लोग नहीं जुड़े, दूसरों के साथ बहुत लोग जुड़ गए। सत्याग्रह : नया प्रयोग अरिष्टनेमि ने जो प्रयोग किया, वह सत्याग्रह या असहयोग का नया प्रयोग था। इस प्रयोग की किसी ने किसी रूप में व्याख्या की और किसी ने किसी रूप में। इसकी सामयिक सत्य और शाश्वत सत्य-दोनों संदर्भो में व्याख्या की जा सकती है। वह एक महान् प्रयोग था। विवाह का स्वीकार या अस्वीकार बहुत छोटी बात है। बहुत सारे लोग विवाह नहीं करते। विवाह को ठुकराने वाले भी बहुत हैं। कुछ लोग अहंकारी होते हैं। वे अपने अहंकार के कारण विवाह छोड़कर चले जाते हैं। कुछ लोग लोभी होते हैं जो दहेज के कारण विवाह छोड़कर चले जाते हैं। क्या विवाह का अस्वीकार बड़ी बात है? समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं पढ़ने को मिलती रहती है--दहेज पूरा नहीं मिला, विवाह करने से इन्कार कर दिया। यह भी विवाह का अरवीकार है। अहंकार के कारण आपस में अनबन हो जाती है। वर और वधु पक्ष के बीच इतना तनाव और झगड़ा हो जाता है कि विवाह के लिए आई बारात को बैरंग लौटना पड़ता है। यह विवाह का अस्वीकार है पर कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है वह सिद्धांत जो अस्वीकार की पृष्ठभूमि में छिपा है। नेम-राजुल वस्तुतः इस घटना से अहिंसा का विराट् सिद्धान्त, सत्याग्रह या सविनय असहयोग का जो सिद्धान्त फलित हो रहा है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। अरिष्टनेमि चले गए, राजीमती से विवाह नहीं हुआ। राजीमती अरिष्टनेमि की प्रतीक्षा करती रह गई। यह घटना घटित हो गई और इससे उपजा सिद्धान्त शेष रह गया। इस घटना प्रसंग को आधार बनाकर जैन आचार्य ने बहुत कुछ लिखा । नेम-राजुल पर काव्य लिखे गए। गीत, नाटिकाएं, लोर आदि अनेक विधाओं में इस प्रसंग को उकेरा गया। आज के साहित्यकार मानते हैं-जैनों में श्रृंगार का कोई विषय बचा है तो वह नेम-राजुल का प्रसंग बचा है। कालिदास ने मेघदूत लिखा। ऐसा घटना प्रसंग कोई जैन कवि नहीं लिख सका । इसीलिए स्व. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहते थे-जैन मुनि कभी कवि नहीं हो सकता । काव्य के लिए श्रृंगार और रौद्र-ये दो रस चाहिए। जैन दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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