________________
असहयोग का नया प्रयोग
हम प्रातःकाल जैन विश्व भारती परिसर में गमन योग कर रहे थे। एक स्थान पर कुछ देर रुके। मैंने देखा-चिड़िया बहुत तेजी से आ रही है और फुदक फुदक कर वापस जा रही है। ध्यान दिया तो पता चला-मक्खी जैसे जीव वहां घूम रहे थे। चिड़िया उन्हें चट करती जा रही थी। वह उन्हें बहुत फुर्ती के साथ चट कर रही थी। बचाव का कोई विकल्प उन जीवों के सामने नहीं था। शक्ति का सिद्धान्त
मन में प्रश्न उभरा--इस दुनिया में शक्ति का सिद्धान्त है। जिसके पास शक्ति है, वह कुछ भी कर लेता है। उन जीवों ने चिड़िया का क्या बिगाड़ा? प्रश्न यह नहीं है कि उन जीवों ने क्या बिगाड़ा नहीं बिगाड़ा ? प्रश्न है शक्ति का। शक्ति किसके पास है। इस शक्ति के सिद्धान्त के आधार पर यह स्वर उच्चरित हुआ-जीवो जीवस्य जीवनम् । मत्स्यन्याय का अर्थ यही है-बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। यह सिद्धान्त दुनिया के इस छोर से उस छोर तक व्यापक बना हुआ है। बड़े जीव छोटे जीवों निगलते जा रहे हैं, खाए जा रहे हैं। शायद प्रकृति के इस नियम के साथ ही मांसाहार चलता है। उसको कैसे अस्वाभाविक माना जाए? बेचारे मूक पशु हैं। उनमें सामर्थ्य नहीं है इसीलिए शिकार भी चल रहा है। कितने निरीह प्राणी मारे जा रहे हैं। प्रसाधन सामग्री के लिए न जाने कितने पशुओं का वध किया जा रहा है। मनुष्य के कोरा प्रसाधन होता है और हजारों प्राणी मौत के मुंह में चले जाते हैं। आदमी मुलायम जूते पहनता है, मुलायम बेग रखता है। वे मुलायम कैसे बनते हैं ? बछड़ा जन्मता है। थोड़ा बड़ा होते ही उसे पीट पीट कर चमड़ी को मुलायम कर दिया जाता है। उस जीवित बछड़े की चमड़ी से बनते हैं ये मुलायम बैग। यह क्रूरता का निदर्शन है। शक्ति और क्रूरता
ऐसा लगता है-शक्ति और क्रूरता जुड़ी हुई है। क्रूरता और शक्ति को अलग अलग नहीं किया जा सकता। दोनों साथ साथ चलते हैं। लोगों को मखमली टोपियां
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org