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चांदनी भीतर की
निमित्त है, वह कुछ भी कर सकता है, पर मैं अपने उपादान पर ध्यान दूं। मेरा उपादान ठीक है, तो निमित्त मेरा कुछ नहीं कर सकता। यदि मेरा उपादान शक्तिशाली है तो निमित्त मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मेरे अस्तित्व को कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। यह सम्यग् दर्शन जितना स्पष्ट और शक्तिशाली बनेगा, साधना की बात समाज में आएगी, आनंद प्रगटेगा, अखंड सुख और अखंड ज्योति का उदभव होगा। यदि हम दूसरों के भँवर में उलझे रहे तो सुख, शान्ति और आनन्द की उपलब्धि नहीं होगी। यह ऐसा भँवर और आवर्त है, जिसका न आर है और न पार । समुद्रपाल के निदर्शन का बोध पाठ यही है-हम अपने उपादान को शक्तिशाली बनाएं। यह बोधपाठ सफल और शांतिपूर्ण जीवन के लिए महामंत्र का काम कर सकता है।
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