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चोर से अचौर्य की प्रेरणा
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तुम्हें पांच तिथियों में भी अब्रह्मचर्य सेवन का त्याग है। हां महाराज!
दो वर्ष चार मास का ही समय बचता है। उसमें सारा समय भोग कार्य में नहीं लगता है। प्रतिदिन घड़ी भर का समय गिनो तो लगभग छह माह का समय ही रहता
हां महाराज !
तुम सोचो-छह माह के भोग के लिए नौ वर्ष का संयम खो देना कौन-सी बुद्धिमानी है ? तुम यह भी सोचो-यदि एक-दो संतान हो जाए तब फिर व्यक्ति मोह में उलझ जाता है। उस स्थिति में संयम ग्रहण करना कठिन हो जाता है।
आचार्य भिक्षु का यह लेखा-जोखा हेमराजजी के दिल को छू गया। उनकी वैराग्य भावना को आकार मिल गया। बाहर में न उलझें
आचार्य भिक्षु की प्रेरणा और तर्कपूर्ण संबोध मिला, हेमराजजी श्रावकत्व से साधुत्व की भूमिका में पहुंच गए। प्रश्न है--यह प्रेरणा हेमराजजी में ही क्यों जगी? सैकड़ों लोग विवाह करने जाते हैं, आचार्य भिक्षु उन सबको नहीं समझा पाए। जिस व्यक्ति की उपादान चेतना प्रबल होती है, क्षयोपशम शक्तिशाली होता है, वह जाग जाता है। बीज को अंकुर बनना है, उसे मिट्टी, पानी और खाद का योग मिला, वह फूट पड़ा। बीज में उपादान शक्ति है। निमित्त मिला और अंकुरित हो गया। .
अनेकांत दृष्टि को मानने वाला किसी एक बात के आधार पर निर्णय नहीं करता। निर्णय करते समय सावधानी बरतने की जरूरत है। हम केवल बाहर में ही न उलझ जाएं। तो व्यक्ति आत्म-निरीक्षण नहीं करता, अपनी अपूर्णताओं को नहीं देखता, अपनी आत्मा पर आए आवरणों पर ध्यान केन्द्रित नहीं करता या अपाय-विचय नहीं करता, वह शुक्ल ध्यान में, साधना की उच्च श्रेणी में जाने का अधिकारी नहीं बनता। शुक्ल ध्यान में वही व्यक्ति जा सकता है, जिसने अपाय विचय और विपाक विचय किया है। महामंत्र शांतिपूर्ण जीवन का
'पर से हट कर अपने आप को देखें' इससे बड़ा अध्यात्म का सूत्र नहीं है। किसी पर आरोपण मत करो। 'उसने मेरा यह कर दिया, मेरा काम बिगाड़ दिया' यह बुद्धि जब तक रहेगी, मिथ्या दृष्टिकोण बना रहेगा। चाहे हम नव पदार्थ जान लें, आचार के क्षेत्र में सम्यग् दर्शन नहीं आएगा। हमारे भीतर यह चेतना जागे--निमित्त
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