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________________ जब धर्म अफीम बन जाता है १५७ लेकिन जब बीच में व्यक्ति का स्वार्थ आड़े आता है तब ये स्थितियां बनती हैं। स्वार्थ की प्रबलता हुई, धर्म की परिभाषाएं बदल गई। आज धर्म की कितनी परिभाषाएं हैं! इस संसार में सात सौ-आठ सौ धर्म माने जाते हैं। इतने धर्म हैं, पर धर्म की परिभाषाएं दो हजार से कम नहीं हैं। जहां स्वार्थ आता है, परिभाषा बदल जाती है, व्यक्ति का रूप बदल जाता है। धर्म का कार्य एक व्यक्ति से पूछा गया-आपकी उम्र क्या है ? उत्तर मिला-पचास वर्ष। फिर पूछा-आपको नौकरी करते कितने वर्ष हो गये ? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया--पचपन वर्ष । व्यक्ति यह सुनकर विस्मित रह गया। उसने कहा-अरे भई ! ये दोनों बातें कैसे होंगी ? व्यक्ति बोला-मैंने बिलकुल ठीक कहा है-मैंने बहुत ओवरटाईम काम किया आदमी परिभाषा बदल देता है। आज धर्म की इतनी परिभाषा बदल गई है, इतने स्वरूप बदल गए कि उसे मूल रूप से पहचानना भी कठिन है। जो धर्म व्यक्तित्व का निर्माण करने वाला था, जिसका सबसे बड़ा कार्य अहिंसा की स्थापना था, यदि वह धर्म अहिंसा की स्थापना नहीं करता है तो न वह ईश्वरीय धर्म हो सकता है, न ईश्वर के दरबार में न्याय दिलाने वाला हो सकता है। व्यक्तिगत जीवन में अहिंसा, समाज के प्रति व्यवहार में अहिंसा बहुत बड़ा धर्म है। यह इतना बड़ा तत्त्व है, जो जीवन की अपूर्णता को पूर्णता में बदलता है, जीवन के धब्बों को एक चित्र में बदल देता है। धब्बा चित्र में बदल गया इंग्लैंड में प्रख्यात साहित्यकार जॉन रस्किन एक समारोह में गए। उनके पास बैठी युवती के हाथ में एक सुन्दर रुमाल था। उसे वह उपहार में मिला था। अकस्मात उस रुमाल पर कुछ गिरा, रुमाल पर गहरा धब्बा हो गया। रुमाल की यह स्थिति देखकर युवती उदास हो गई। जॉन रस्किन युवती से बोले बहन--उदास क्यों हो गई? उसने कहा-महाशय ! देखो मेरे इतने सुंदर रुमाल पर कैसा धब्बा हो गया है ? जॉन रस्किन ने कहा--यह रुमाल मुझे दो। युवती ने रुमाल जॉन रस्किन को दे दिया। रस्किन जितने बड़े साहित्यकार थे उतने ही बड़े चित्रकार थे। रस्किन कुछ मिनट के लिए एकान्त में गए, उस रुमाल पर एक चित्र बनाया और लोट आए। युवती से कहा-बहन ! यह लो तुम्हारा रुमाल । युवती रुमाल को देखकर बोली--यह रुमाल मेरा नहीं है। मेरे रुमाल में धब्बा था। वह धब्बा कहां है ? आप मुझे मेरा रुमाल दें। यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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