________________
१५६
चांदनी भीतर की धर्म के नाम पर अनेक संप्रदायों ने हिंसा की है। जब यह भावना पैदा हो गई-मेरे धर्म-संप्रदाय को सारा संसार माने। यदि सहजता से न माने तो भय और प्रलोभन से मनवाया जाए, तलवार के बल पर जबरदस्ती मनवाया जाए। जब यह भावना प्रबल बनी, तब अहिंसा के माध्यम से विश्व-शान्ति की बात करने वालों ने हिंसा का सहारा लिया और विश्व में अशान्ति का उदघोष हो गया। जब सत्तालोलुप व्यक्ति धर्म के आसन पर आसीन हो जाते हैं, बल पूर्वक सबको अपने धर्म में दीक्षित करना चाहते हैं तब हिंसा और अशान्ति का साम्राज्य प्रसार पाता है। यह जो स्वार्थ है, जबर्दस्ती अपने धर्म के विस्तार का जो प्रयत्न है, उसका संबंध धर्म के साथ नहीं है। जब-जब यह स्वार्थ बढ़ता है, व्यक्ति अनश्वर से हटकर नश्वर के साथ जुड़ जाता है। व्यक्ति के स्वार्थ के आधार पर ही शायद धर्म की अनेक परिभाषाएं बन गई। स्वार्थ के लिए
एक जमाना राजाओं का रहा। उस समय उनका एक-छत्र साम्राज्य चलता था। एक कवि गया राजदरबार में। उसे राजा से कुछ पाना था। राजा को प्रसन्न किए बिना कुछ मिलता नहीं। अपने स्वार्थ के लिए कवि लोग राजा की विरुदावली करते थे। कभी-कभी उन विरुदावलियों को पढ़कर बहुत आश्चर्य होता है। कवि ने राजा की प्रशंसा में एक श्लोक कहा--
कल्पद्रुमो न जानाति, न ददाति वृहस्पतिः।
अयं तु जगतीजानि, जानाति च ददाति द॥ राजन् ! कल्पवृक्ष बहुत बड़ा है। वह व्यक्ति को बहुत कुछ देता है पर वह ज्ञानी नहीं है। वृहस्पति ज्ञानी है पर वह कुछ देता नहीं है। आप ही इस दुनिया में ऐसे महापुरुष हैं, जो जानते भी हैं और देते भी हैं। आप कल्पवृक्ष से भी बड़े हैं, वृहस्पति से भी बड़े हैं। यह स्वार्थ का परिणाम है-कल्पवृक्ष को भी नीचा दिखा दिया
और वृहस्पति को भी नीचा दिखा दिया। सौ-दो सौ या हजार रुपये पाने के लिए व्यक्ति किस स्तर पर चला जाता है ! व्यापक है स्वार्थ की वृत्ति
यह स्वार्थ की वृत्ति बहुत व्यापक है। धार्मिक लोग भी इससे मुक्त नहीं रहे हैं। जब जब धर्म के साथ स्वार्थ जुड़ा, वह प्रबल बना तब तब सचमुच हिंसा का दारुण रूप सामने आया है। धर्म के नाम पर, ईश्वर के नाम पर हिंसा का दारुण रूप सामने आया है। धर्म के नाम पर, ईश्वर को जो सृष्टि का निर्माता मानते हैं, पालक और संरक्षक मानते हैं, उस ईश्वर के नाम पर हिंसा हो, यह सोचा भी नहीं जा सकता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org