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जब धर्म अफीम बन जाता है
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अस्तित्व को स्वीकार कर लेता है। निष्कर्ष की भाषा यह है-केंचुली ऊपर चढ़ी हुई है उसे हम हटा दें तो धर्म का शुद्ध रूप मिल जाए। धर्म के केन्द्र में है परम सत्ता। उसकी परिधि में ही सारे धर्म चल रहे हैं। परिधि केन्द्र से जुड़ी हुई है। अन्तर है उपासना का या कुछ सिद्धान्तों की स्वीकृति का। धर्म के उद्देश्य में भी कुछ अन्तर हो सकता है, किन्तु धर्म के मूल रूप में शब्द बहुत निकट आ जाते हैं। उपासना पद्धति, सिद्धान्त या उद्देश्य का जो अंतर है, उससे भी अधिक अंतर है स्वार्थ का। धर्म के साथ व्यक्ति का स्वार्थ भी जुड़ जाता है। सब लोग समान नहीं होते। वे धर्म के साथ अपने अपने स्वार्थ का संबंध स्थापित कर देते हैं। धर्म को संस्थागत रूप मिला, यह आवश्यक था किन्तु साथ में स्वार्थ का मुलम्मा और चढ़ा दिया गया। धर्म के दो रूप
धर्म के दो रूप हैं-वैयक्तिक धर्म और संस्थागत धर्म । वैयक्तिक धर्म शुद्ध आध्यात्मिक होता है। संस्थागत धर्म सांप्रदायिक धर्म है। मार्क्स ने धर्म का विरोध नहीं किया। बहुत लोग इस सचाई को नहीं जानते--मार्क्स धर्म का विरोधी नहीं था। साम्यवाद भी धर्म का विरोधी नहीं है। अनेक लोगों की यह धारणा रही-साम्यवाद धर्म को उठाने वाला है। वास्तव में ऐसा नहीं है। न मार्क्स धर्म का विरोधी था और न साम्यवाद धर्म का विरोधी रहा। उसने विरोध किया उस संस्थागत धर्म का, जो सत्ता के साथ जुड़ गया। मार्क्स ने राजनीति, सत्ता और पैसे से जुड़े धर्म का ही प्रखर विरोध किया था।
___ हम भगवान महावीर की भाषा को पढ़े। महावीर ने भी सत्ता, धन और विषयों से मुक्त धर्म को विनाशकारी कहा है। महावीर की भाषा है-पिया हुआ, कालकूट विष, अविधि से पकड़ा छुआ हुआ शास्त्र और नियंत्रण में नहीं लाया हुआ बैताल जैसे विनाशकारी होता है, वैसे ही विषयों से मुक्त धर्म भी विनाशकारी होता है--
विसं तु पीयं जह कालकूड, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं।
एसो व धम्मो विसओवत्रो, हणाइ वेयाल इवविवत्रो। विरोध क्यों होता है ?
जिस धर्म का महावीर ने विरोध किया, उस धर्म का मार्क्स ने भी विरोध किया और आज का प्रत्येक प्रबुद्ध एवं चिन्तनशील व्यक्ति उस धर्म का विरोध करेगा। वह सत्ता, राजनीति, धन और विषयों से जुड़े धर्म का विरोध किए बिना नहीं रहेगा। धर्म का जो शुद्ध रूप है अहिंसा, संयम और तप, उसका कोई विरोध नहीं कर सकता। जब धर्म के साथ स्वार्थ जुड़ता है, हिंसा जुड़ती है तब तक उसका विरोध होता है।
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