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जब धर्म अफीम बन जाता है
धर्म उत्कृष्ट मंगल है। प्रश्न हुआ-कौनसा धर्म उत्कृष्ट मंगल है ? उत्तर दिया गया-अहिंसा, संयम और तपमय जो धर्म है, वह उत्कृष्ट मंगल है। जहां हिंसा, असंयम
और अतप है, वहां धर्म मंगल नहीं है। धर्म मंगल भी है, अमंगल भी है। धर्म के ये दोनों रूप हमारे सामने आते हैं। धर्म के प्रति आर्कषण क्यों ?
हम धर्म की समस्याओं पर विचार करें। धर्म के प्रति आकर्षण बहुत हैं। प्रश्न होता है--धर्म के प्रति आकर्षण क्यों है ? इसका कारण क्या है ? प्रत्येक धर्म के साथ एक अविनाशी शाश्वत सत्ता जुड़ी हुई है। कोई भी धर्म ऐसा नहीं है, जिसके साथ परम सत्ता का संबंध न हो। खुदा, महाप्रभु, यीशु, परमेश्वर, ब्रह्मा, परमात्मा, सिद्ध-किसी न किसी रूप में कोई परम सत्ता जुड़ी हुई है। अविनश्वर सत्ता के बिना धर्म के प्रति उतना आकर्षण नहीं हो सकता। अज्ञात या अदृश्य के प्रति, शाश्वत शक्ति के प्रति
आकर्षण अधिक होता है। प्रत्येक धर्म ने अपने साथ परम सत्ता का सम्बन्ध स्थापित किया है इसीलिए धर्म के प्रति आकर्षण है। शेष सामयिक और तात्कालिक हो सकते हैं लेकिन स्थायी आकर्षण का केन्द्र धर्म ही है। पैसे के प्रति आकर्षण है पर जितना
आकर्षण परम सत्ता के प्रति है, उतना पैसे के प्रति नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति जानता है-पैसा पैसा है पर वह यह भी जानता है--आखिर कुछ नहीं है। वह यह मानता है-परम सत्ता ही सब कुछ है इसीलिए धर्म के प्रति बहुत आकर्षण है। यदि हम इस दृष्टि से चिन्तन करें, परम सत्ता की दृष्टि से देखें तो प्रायः सारे धर्म एक बिन्दु पर आ जाते हैं। अंतर है स्वार्थ का ___ जैन दर्शन में जो परमात्मा है, वही परम सत्ता है इसीलिए आचार्य हरिभद्र सूरी ने लिखा-कहा जाता है- जैन लोग ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। इस पर सापेक्ष दृष्टि से सोचें। जैन दर्शन मानता है-आत्मा ही परमात्मा है, आत्मा ही ईश्वर है इसलिए इसमें कोई दोष नहीं आता। इस दृष्टि से जैन दर्शन भी ईश्वर के
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