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________________ चांदनी भीतर की दिया। अब मुझे परिचय दे देना चाहिए। आज तो अपना परिचय स्वयं देने की पद्धति चल रही है। राजा ने अपना परिचय देना शुरू कर दिया-भंते! आप मुनि बन गये पर लगता है आप व्यवहार को नहीं जानते । दुनिया को आपने देखा नहीं है। क्या आपको पता है - मैं कौन हूं ? मेरे पास घोड़े हैं, हाथी हैं, आदमी हैं, यह नगर है । बहुत बड़े राज्य का स्वामी हूं। बड़े-बड़े प्रासाद हैं, विशाल अन्त: पुर है। इस राज्य का कण-कण मेरी आज्ञा में है। मैं अनाथ कैसे हुआ ? भंते! कॅम से कम इतना झूठ तो न बोलें ? आप एक सम्राट् को अनाथ बता रहे हैं। इससे बड़ा क्या झूठ होगा ? नाथ की परिभाषा मैं १४४ अनाथी मुनि ने यह सुना । वे अपने आप में लीन थे। जो व्यक्ति अपने भीतर की आत्मा को, परमात्मा को जगा चुका होता है, वह निःस्पृह होता है। उसके स्पृहा नहीं होती, भय भी नहीं होता। मुनि बोले--सम्राट् श्रेणिक ! मैंने तुम्हारा परिचय पा लिया। तुम एक बात ध्यान से सुनो- तुम अभी नाथ का अर्थ ही नहीं जान रहे हो । बड़े अज्ञानी राजा हो । मुनि ने इतने बड़े राजा को अज्ञानी कह दिया, नहले पर दहला जैसा हो गया । कौन होता है नाथ ? सम्राट् श्रेणिक ने जिज्ञासा की । नाथ का अर्थ है- योगक्षेम विधाता । जो योग और क्षेम करने वाला है, वह नाथ है। तुम नाथ का अर्थ भी नहीं जानते और मेरे नाथ बनना चाहते हो। तुमने यह समझ लिया कि मैं गरीब घर का था । रोटियां खाने को नहीं मिलती थीं। घर में कुछ नहीं था । इसलिए मैं साधु बन गया । पर वस्तुतः ऐसा नहीं है। आजकल बहुत लोग मिथ्या आरोप लगाते हैं। यह आरोपों की दुनिया है। आरोप से कभी बचा नहीं जा सकता। लोग कह देते हैं- ये बहुत सारी साध्वियां दीक्षित होती हैं। गरीब घरों की होती हैं, इनकी कोई शादी की व्यवस्था नहीं होती। माता-पिता निकाल देते हैं और वे संस्था में भर्ती हो जाती हैं। कैसी विडंबना ! मुनि बोले- इतने बड़े राजा होकर नाथ का अर्थ ही नहीं जानते ? राजा अवाक् रह गया, वह मुनि की तेजस्विता के सामने बोल ही नहीं सका । हाथ जुड़ गये । विनम्र स्वर में प्रार्थना की- महाराज ! मैं नहीं जानता, कृपया आप बतला दें। मैं आपकी अनाथता को जानना चाहता हूं। गाथा अनाथता की मुनि ने अपनी सारी कहानी सुना दी। मैं एक धनी सेठ का बेटा हूं। माता-पिता का बड़ा प्यार दुलार मिला । मेरी शादी भी हो गई। सुन्दर, सुशील और प्रिय पत्नी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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