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________________ १३८ चांदनी भीतर की दो चिकित्सा सूत्र आदमी भी अपने प्रतिरूपों से लड़ता है। वह अपने प्रतिरूप बनाता है और उनसे लड़ते-लड़ते समाप्त हो जाता है। इसलिए मन से परे जाना आवश्यक होता है। जिसमें अपना विश्वास नहीं जागता, आत्मविश्वास नहीं जागता, वह केवल प्रतिरूपों से लड़ता है। मृगापुत्र का आत्मविश्वास जाग उठा। उसने पिताजी से कहा-तात ! आप चिन्ता न करें। मैं धर्म की साधना करूंगा। मुझे संयम और तप--ये दो साधन मिल गए हैं। संयम और तप--ये दो चिकित्सा के सूत्र हैं। जो व्यक्ति संयम और तप के द्वारा अपनी चिकित्सा का सूत्र पा लेता है, वह अनेक मानसिक स्थितियों को सुलझा लेता है, शारीरिक दुविधाओं को मिटा लेता है। असंयम और अतप से अनेक समस्याएं पैदा होती हैं। आज अध्यात्म का समाधान मान्य और प्रतिष्ठित होता चला जा रहा है। धर्म के क्षेत्र में केवल यह कहा जाता है--संयम और तप के द्वारा समस्याओं को सुलझाया जा सकता है किन्तु आज विज्ञान भी इसी भाषा में बोल रहा है। विज्ञान का क्षेत्र केवल औषध पर निर्भर नहीं है। प्रश्न आया-इतनी तेज दवाइयां जा रही है, उससे जीवन-शक्ति नष्ट हो रही है। दवा की प्रतिक्रिया हो रही है। इस स्थिति में खोज चली--ऐसा भी कोई उपाय है, जिससे रोग भी मिट जाए और इन भयंकर औषधियों से पिण्ड छुड़ाया जा सके। इस सन्दर्भ में ये सारे विकल्प सुझाए जा रहे हैं। पहले किसी भी हॉस्पिटल में आसन नहीं कराए जाते थे। लेकिन आज आसन, प्राणायाम और ध्यान के प्रयोग भी किये जा रहे हैं। यह सारा विकल्प की खोज का परिणाम है। चिकित्सा : विकल्प हम केवल बाहर ही बाहर न खोजें, अपने भीतर भी खोजें। हमारा कर्म क्या होना चाहिए ? हमारी जीवन शैली क्या होनी चाहिए ? हम किस भाषा में सोचें ? मृगापुत्र की भाषा है--पशु या हरिण की तरह जंगल में रहूंगा और बीमार पड़ने पर चिकित्सा नहीं करूंगा। प्रत्येक व्यक्ति इस भाषा में नहीं सोच सकता। वह इस भाषा में सोचें या चिकित्सा की भाषा में? सबसे पहला विकल्प यही होना चाहिए--चिकित्सा न कराऊं। यदि यह संभव नहीं है तो फिर दूसरा विकल्प यह होना चाहिए-अपनी चिकित्सा में स्वयं करूं। यदि वह आसन, उपवास या लंघन से संभव है तो उसका प्रयोग करूं। यदि बीमारी का कारण भाव है तो भाव चिकित्सा करूं। जप के द्वारा चिकित्सा करूं। जप भी चिकित्सा की एक प्रणाली है। प्राचीन जैन आचार्यों ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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