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अचिकित्सा ही चिकित्सा
सकता है । मृगापुत्र के मन में यह भावना रही होगी इसलिए उसने पिता से कहा- आप चिंता न करें । मेरी चिकित्सा मैं स्वयं कर लूंगा। इस स्वर के पीछे उसका आत्म-विश्वास बोल रहा था। जिस व्यक्ति का आत्म-विश्वास जाग जाता है और यह सूत्र मिल जाता है - मैं अपनी बहुत सारी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं, उस व्यक्ति की समस्याएं सुलझ जाती हैं। समस्याएं वहां उलझती है-जहां आत्म-विश्वास सो जाता है । जब आत्म विश्वास की कमी होती है तब व्यक्ति अपने ही प्रतिबिम्बों से लड़ना शुरू कर देता है । आस्था और आत्म-विश्वास की कमी के कारण हम मानसिक प्रतिबिम्ब बनाते हैं और उन प्रतिबिम्बों से ही लड़ना शुरू कर देते हैं। ध्यान और सामायिक का सूत्र यही है-- मानसिक प्रतिबिम्ब कम बनाओ या मत बनाओ। मानसिक प्रतिबिम्बों को खड़ा मत करो। मन के खेल मत खेलो। वस्तुतः यथार्थ की समस्याएं हमारे सामने कम होती हैं, अधिकांश समस्याएं मानसिक बिम्बों से उत्पन्न होती हैं। जादुई ब
एक किसान के खेत में एक जादुई टब निकला। बड़ा विचित्र टब था । टब खाली था। किसान ने उसमें एक चीज डाली। फिर उसे निकाला। वही चीज निकलती चली गई। उस एक ही चीज की इक्यासी आकृतियां निकलती चली गई। किसान ने सोचा -- बड़ा विचित्र काम है- एक डालो और इक्यासी प्राप्त करो। किसान का लोभ बढ़ा। उसने अनेक वस्तुएं बनानी प्रारंभ कर दी । आसपास चर्चा फैलने लगी। चर्चा फैलते-फैलते जमींदार तक पहुंच गई। जमींदार ने सोचा- वह सब मेरी जमीन में निकला है इसलिए उस पर मेरा अधिकार है। जमींदार ने किसान से वह जादुई टब छीन लिया। जमींदार उस टब से अनेक चीजें बनाने लगा। इस बात का राजा को पता चला। राजा ने टब पर अपना अधिकार जमा लिया। राजा ने अपना भण्डार भरना शुरू कर दिया। उसमें एक मोती डाला, इक्यासी मोती निकल आए। एक हीरा और माणक डाला, इक्यासी हीरे और माणक आ गए। राजा ने सोचा- यह बड़ी गजब की माया है । एक डालो और इक्यासी निकाल लो। आखिर इसमें है क्या ? मुझे इसके भीतर जाकर देखना चाहिए। राजा टब के भीतर घुसा। वह बाहर निकला और उसके साथ एक के बाद एक राजा निकलते चले गए। इक्यासी राजाओं की एक फौज खड़ी हो गई । सिंहासन था एक और राजा हो गए इक्यासी । सिंहासन पर कौन बैठे ? इस बात को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। वह लड़ाई इतनी गहरी हुई कि उसमें सब राजा एक-दूसरे के हाथों मारे गये ।
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एक आवाज आई- जो जादुई टब से खेलता है, जो अपने मन के प्रतिबिंबों से लड़ता है, उसकी गति है विनाश ।
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