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________________ पथ और पाथेय १३१ मिठास है। आकार बड़ा-छोटा है, उसका महत्व नहीं है। महत्व है स्वरूप का। भगवान महावीर ने जो धर्म का स्वरूप बताया, उसका प्रथम बिन्दु है--वीतरागता और उसका अतिम बिन्दु भी है--वीतरागता । मात्रा का भेद तो हो सकता है, स्वरूप में अन्तर नहीं आ सकता। चार दृष्टियां ये चार वर्गीकरण हमारे सामने हैं-- १. द्रव्यानुयोग - दार्शनिक दृष्टि २. गणितानुयोग - विस्तार दृष्टि ३. चरणकरणानुयोग - आचारशास्त्रीय दृष्टि ४. धर्मकथानुयोग . घटनापरक दृष्टि, जीवन परक दृष्टिकोण। इन सारी दृष्टियों की मीमांसा से धर्म का जो निखरा हुआ रूप हमारे सामने आएगा, वह बिल्कुल अलौकिक होगा। अटल निश्चय मृगापुत्र ने कहा--माता-पिता ! अब आप क्यों देरी कर रहे हैं ? आपकी कृपा से मुझे जाति स्मृति हो गई है। में पूर्व जन्मों को साक्षात् कर रहा हूं, मेरी दृष्टि पारदर्शी हो गई है। उसका जो निर्णय होगा, उसे आप बदल नहीं सकते। मृगापुत्र का यह स्वर उसके अटल निश्चय को अभिव्यक्त कर रहा था। माता-पिता उसे निश्चय से न रोक पा रहे थे और न ही हटा पा रहे थे। जब व्यक्ति किसी निश्चय पर पहुंच जाता है तब कोई भी शक्ति उसे विचलित नहीं कर सकती। उसका निश्चय स्पष्ट था, पथ स्पष्ट था और पाथेय उसे प्राप्त था। इस स्थिति में माता-पिता के सामने उसको स्वीकृति देने के सिवाय विकल्प ही नहीं था लेकिन वे स्वीकृति देने से पूर्व एक परीक्षण और करना चाहते थे। मृगापुत्र इसके लिए भी प्रस्तुत था। इसका जो परिणाम आएगा, वह प्रेय ही नहीं, श्रेय भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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