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________________ पथ और पाथेय १२६ को भटकाते हैं। आज के सन्दर्भ में हम विचार करें। बहुत अपराध, हिंसा और तनाव-ये क्यों हैं ? इसका कारण है-अल्प कर्म जीवन नहीं है। संबल है धर्म कर्म का एक मतलब है प्रवृत्ति । कर्म का एक अर्थ है--अपना किया हुआ अर्जित संस्कार, अपने अर्जित कर्म पुद्गल। दोनों दृष्टियों से विचार करें। जिसके कर्म ज्यादा होते हैं, वह बहुत दुःखी होता है और जिस व्यक्ति में प्रवृत्तियां बहुत होती हैं, वह भी दुःखी होता है। वह कभी मानसिक तनाव से मुक्ति नहीं पा सकता। जितना कर्म उतनी ही वेदना । अवेदना का जीवन जीने के लिए आवश्यक है कर्म का अल्पीकरण। वेदना में भी कमी तभी संभव है जब जीवन में कर्म कम होंगे, प्रवृत्ति कम होगी। मृगापुत्र ने कहा--माता-पिता ! मैं अब धर्म की साधना करना चाहता हूं। धर्म ही इस दीर्घ यात्रा का एक मात्र संबल है। आज धर्म को भी एक ऐसे मिश्रण में मिला दिया कि वह भी शुद्ध नहीं है, कोरा घोल बन गया। कभी राजनीति से जोड़ दिया, कभी परलोक से जोड़ दिया, कभी समाज से जोड़ दिया। धर्म को शुद्ध मूल रूप में बहुत कम समझा जाता है। दार्शनिक दृष्टि जैन साहित्य का वर्गीकरण किया गया, उसे चार भागों में बांटा गया-- १. द्रव्यानुयोग २. चरणकरणानुयोग ३. गणितानुयोग ४. धर्म कथानुयोग यह एक वैज्ञानिक वर्गीकरण है। हम द्रव्यानुयोग की दृष्टि से धर्म पर विचार करें। द्रव्यानुयोग हमारा दार्शनिक दृष्टिकोण है, तत्व-विद्या का दृष्टिकोण है। धर्म क्या है ? धर्म मूल द्रव्य नहीं है। मूल द्रव्य है, आत्मा-जीव । धर्म केवल पर्याय है, इसलिए देहधारी अदमी धर्म करता है, जैसे ही वह विदेही बना, धर्म भी समाप्त हो गया। जो मुक्त आत्मा-परमात्मा बन गया, उसके लिए कोई धर्म नहीं है, क्योंकि जो पर्याय था, वह समाप्त हो गया। आचार-शास्त्रीय दृष्टि आचारशास्त्रीय दृष्टि से विचार करें। प्रत्येक व्यक्ति अच्छा जीवन जीना चाहता है। अच्छा जीवन जीने के लिए अपनी मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियों पर संयम करना, उनका नियमन करना जरूरी होता है। प्रवृत्तियों का नियंता है धर्म। यह है आचारशास्त्रीय स्वरूप। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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