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चांदनी भीतर की
भटक जाता है। पथ को देख लेना और पाथेय को पा लेना महापथ को पार करने के लिए जरूरी है। पाथेय क्या है ?
पिता ने पूछा--पुत्र ! इस महापथ के लिए किस पाथेय की जरूरत है ?
'पीने को दूध भी चाहिए, खाने को दधि भी चाहिए, घी भी चाहिए। मैं यह सारा लेना चाहता हूं।'
'कहां ले जाओगे?' 'साथ ले जाऊंगा। 'कब ले जाओगे?' 'जब यहां से जाऊंगा। 'तुम भोले हो, कुछ भी साथ में नहीं चलेगा।'
कैसे नहीं चलेगा ? मैं इन सबको ले जाऊंगा। क्या आप जानते हैं--दूध कौन सा है, दधि और घी कौन सा है ?
'तुम किस दूध, दधि और घी की बात कर रहे हो ?
ज्ञान दुग्धं दधिः श्रद्धा घृतं तच्चरणं स्मृतम्-ज्ञान मेरा दूध होगा, श्रद्धा दधि होगी और चरित्र मेरा घी होगा।
ज्ञान, दर्शन, चरित्र--तीनों एक ही चीज हैं। ज्ञान को जमाओगे तो गाढ़ी श्रद्धा बन जाती है, उसका सार है--आचरण। व्यवहार में हमें विभाजित प्रतीत होते हैं। निश्चय नय का काम है-एक कर देना, द्वैत में अद्वैत स्थापित करना। यदि गोरस कहें तो दूध, दही और घी-तीनों एक शब्द में आ गए। अल्प वेदना : अल्प कर्म
मृगापुत्र ने कहा--नाना प्रकार के जो भाव हैं, वह मेरा भोज्य होगा। आप मुझे स्वीकृति दें, मैं बहुत बड़ा सम्बल साथ में लेकर जाऊंगा। मुझे कोई कठिनाई नहीं होगी। मैं जहां जाकर पड़ाव करूंगा, वहां कर्म और वेदना न्यूनतम होगी। पाथेय लेकर जाने वाला व्यक्ति भूख-प्यास से पीड़ित नहीं होता। वह आराम से जंगल को काट देता है वैसे ही मैं अगले जन्म में जाकर जहां पड़ाव करूंगा वहां मेरे कर्म भी कम होंगे और वेदना भी कम होगी।
यह जीवन की सफलता का आध्यात्मिक सूत्र है। वह मनुष्य जीवन सफल और आदर्श जीवन माना जा सकता है, जिसमें कर्म अल्प और वेदना अल्प होती है। वह जीवन अच्छा नहीं माना जा सकता, जिसमें कर्म बहुत होते हैं। वे कर्म संस्कार आदमी
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