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________________ पथ और पाथेय दीर्घ मार्ग मृगापुत्र और माता-पिता का संवाद चल रहा था। पिता ने कहा--पुत्र ! तुम मुनि क्यों बनना चाहते हो ? तुम्हारे मुनि बनने का प्रयोजन क्या है ? उद्देश्य क्या है ? मृगापुत्र बोला--माता-पिता ! मैं बहुत दीर्घ मार्ग को देख रहा हूं, महान् अध्वा को देख रहा हूं। उस मार्ग पर चलने के लिए मुझे पाथेय की जरूरत है। उस पाथेय के लिए मैं संयम को स्वीकार करना चाहता हूं। - कहां है लम्बा मार्ग ? तुम्हारे राज्य में तो वाहन और पाथेय की भी कमी नहीं पिता-माता ! यह मार्ग बहुत छोटा है। मैं जिस दीर्घ मार्ग को देख रहा हूं, उसे पार करने के लिए आपका कोई वाहन काम नहीं कर सकता और वैसा पाथेय दे सके, ऐसा एक भी तत्त्व आपके राज्य में नहीं है। बात रहस्यपूर्ण बन गई। जरूरी है पाथेय पिता ने कहा--तुम साफ-साफ बताओ। पिताजी ! मैं आपको व्यवहार की बात बताऊं। एक व्यक्ति ने जंगल का लम्बा रास्ता ले लिया। दह भयंकर जंगल से गुजर रहा है। साथ में रोटी-पानी नहीं है। वह भूख-प्यास से पीड़ित हो गया। वह कैसे पार कर पाएगा जंगल को। अनेक बार ऐसी स्थिति में व्यक्ति जंगल का पार नहीं पा सकता, बीच में ही रह जाता है। इसी प्रकार मैंने जिस पथ को देखा है, वह बहुत लम्बा है। उस मार्ग पर धर्म का पाथेय लिए बिना जो व्यक्ति जाता है, वह बहुत पीड़ित होता है। कभी रोग, कभी कष्ट--नाना प्रकार की समस्याओं की पीड़ा झेलनी पड़ती है, वह सुख-शान्तिमय जीवन नहीं जी सकता। इसलिए आप कृपा कर अनुमति दें ताकि मैं अपने लिए पाथेय पा सकू। - बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है पथ और पाथेय का । जीवन यात्रा में सफलता के लिए सबसे पहली शर्त है पथ को जान लेना । जिसने पथ को नहीं देखा है, वह व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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