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________________ चांदनी भीतर की उसके प्रति आकर्षण अधिक पैदा होगा। जैन रामायण के प्रसंग में एक कहानी कही जाती है। एक सेठानी को जिस काम के लिए मनाही करते वह उस काम को जरूर करती । सेठ ने कहा- आज सावण की तीज है। आज मेला लगेगा, तुम्हें वहां नहीं जाना है। उसने कहा- मैं जरूर जाऊंगी। ठीक है । जाओ तो अकेले मत जाना, बच्चों को साथ लेते जाना । नहीं ! अकेली ही जाऊंगी। क्या मैं निकम्मी हूं, जो बच्चों को पीछे-पीछे ले जाती रहूं ? कोई बात नहीं। पर जाओ तो अच्छे कपड़े और गहने पहन कर जाना। नहीं तो अच्छा नहीं लगेगा। लोग कहेंगे- देखो इतने बड़े सेठ की पत्नी है और सीधे-सादे फटे-पुराने कपड़ों में आई है। मैं अच्छे वस्त्र नहीं पहनूंगी। वहां जाओ तो नदी के पास में तो मत जाना । नदी के पास में ही नहीं, भीतर जाऊंगी। सेठ को जो करना था, वह कर लिया। सेठानी फटे-पुराने कपड़े पहनकर मेले में गई, नदी के मध्य चली गई। ऐसी गई कि फिर वापस आई ही नहीं । १२० यह एक मानवीय दुर्बलता है। मानवीय प्रकृति ही ऐसी है कि निषेध भी एक अभिप्रेरक तत्त्व बन जाता है, प्रेरणा बन जाता है । मनोविज्ञान का एक विद्या के रूप में इन शताब्दियों में विकास हुआ है किन्तु मनोवैज्ञानिक तथ्य नए विकसित नहीं हुए हैं। न जाने कब से शाश्वत काल से मनुष्य में ये वृत्तियां रही हैं। जैसा आज हो रहा है, वैसा अतीत में भी होता रहा है। चाहे व्याख्या करना कोई जाने या न जाने । भय का चित्र मृगापुत्र के माता-पिता ने मनोवैज्ञानिक तरीके से काम लिया । पिता बोला- पुत्र ! तुम मुनि बनना चाहते हो पर देखो तुम कौन हो ? तुम बहुत सुकुमार हो और श्रामण्य का आचरण करना कितना कठिन है । तुम यह असंभव बात मत करो। तुम साधु भले बनो, हमें क्या आपत्ति है। तुम्हारी इच्छा है तो हम क्यों रोकें पर पहले वस्तु स्थिति का अंकन तो करो। क्या तुम्हें पता है, यह साधुत्व क्या है ? किसने तुम्हारे कान में फूंक मार दी ? तुम साधु बनने की बात कर रहे हो पर इस बात को सोचो -- साधुपन कितना कठोर होता है। वह मोम के दांत से लोहे के चने चबाने जैसा है। क्या मोम के दांत से लोहे के चने चबाए जा सकते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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