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________________ मोम के दांत और लोहे के चने मृगापुत्र का प्रस्ताव मृगापुत्र ने कहा-मैं मुनि बनूंगा। इस प्रस्ताव पर माता-पिता ने चिन्तन किया। उन्होंने सोचा-मनाही नहीं करना है, निषेध नहीं करना है। निषेध किया जाएगा तो विचार और पक्का बन जाएगा। हम निषेध न करें, कोई मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाएं। उत्तराध्ययन का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करना बहुत जरूरी है। इस दृष्टि से मृगापुत्र अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है। माता-पिता ने ऐसे दृष्टिकोण अपनाए, मानसिक दृष्टि से उसके सामने कुछ प्रश्न रखे। यदि कोई कच्चा होता तो मुनि बनने की बात वहीं छोड़ देता, आगे बढ़ता ही नहीं किन्तु मृगापुत्र धीर था, विशिष्ट ज्ञानी था इसलिए वह अविचल बना रहा। यदि किसी व्यक्ति को लक्ष्य से विचलित करना है तो उसके दो मनोवैज्ञानिक तरीके हैं-भय दिखाना और हीन भावना का निर्माण करना। जो धीर होता है, वह इनसे प्रकपित नहीं होता। लक्ष्यं विचलितुं कर्तुं भयं दर्शयते जनः। हीनभावं च निर्माति, तत्र धीरो न कम्पते। भय और हीन भावना लक्ष्य से विचलित करने के दो तरीके बतलाए गये हैं-या तो भय दिखाओ या हीन भावना पैदा करो। उसके दुर्बल पक्षों को सामने रखो। हर व्यक्ति में दुर्बल पक्ष होता है। दुर्बलता की इतनी विभीषिका पैदा कर दो कि वह विचलित हो जाए। लक्ष्य से विचलित करने के ये दो तरीके हैं और ये तरीके समय-समय पर काम में लिए जाते रहे हैं। जब भी कोई प्रसंग आता है बड़ा काम करने का, तब आदमी सबसे पहले भय दिखाता है--देखो ! तुम चले तो हो किन्तु आगे क्या-क्या होगा ? क्या तुम्हें पता है, सामने क्या स्थितियां आएगी ? इस प्रकार एक भय का वातावरण तैयार किया जाए, जिससे व्यक्ति डर जाए और वहीं उसके पैर थम जाएं। या फिर हीन भावना पैदा कर दी जाए-तुम काम तो इतना बड़ा करने जा रहे हो और तुम्हारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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