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________________ ११६ चांदनी भीतर की क्या ? मैं आया तब आप बैठे रहे और में जा रहा हूं तब सम्मान में खड़े हो गए । ऐसा क्यों ? शेख फुरवान ने कहा- पहले तुम सम्मान के अधिकारी नहीं थे और अब सम्मान के अधिकारी बन गए हो ? संतवर ! इसका रहस्य क्या है ? पहले मैं सम्मान का अधिकारी क्यो नहीं था और अब कैसे हूं ? सुलतान ! जब तुम आए तब तुम्हारे सिर पर इन अशर्फियों का अहंकार सवार था। मैं किसी अहंकारी को सम्मान नहीं देता। अब जब तुम जा रहे हो तब अहंकार का भूत तुम्हारे सिर से नीचे उतर गया है। तुम विनम्र बन गए हो । विनम्रता को सम्मान देना एक फकीर का कर्तव्य है इसलिए मैं तुम्हें सम्मान दे रहा हूं। दो प्रकार की धारणाएं, कल्पनाएं, मनोवृत्तियां या दो प्रकार की दुनिया है । एक प्रकार की दुनिया का चिन्तन और कल्पना अलग होती है दूसरी प्रकार की दुनिया की कल्पना और चिन्तन अन्यथा प्रकार का होता है, इसलिए जब दस-पंद्रह वर्ष का बालक दीक्षा लेता है, तब लोग आश्चर्य करतें हैं। दीक्षा लेते हैं एक या दो व्यक्ति और आश्चर्य होता है सब लोगों को । वे कहते हैं-देखो ! बेचारा दीक्षा ले रहा है। इसने क्या सुख भोगा ? दुनिया में आकर क्या देखा ? सबको छोड़कर जा रहा है ! इसके मन में कैसे जाग उठा वैराग्य ? ऐसे न जाने कितने प्रकार के बोल लोगों के मुख से निकलते हैं। लोगों की ये बातें स्वाभाविक हैं। जिस दुनिया में जी रहे हैं, जिस मनोवृत्ति में जी रहे हैं, उसमें आश्चर्य होना स्वाभाविक है। उनकी सारी धारणा बॉडी इमेज से जुड़ी हुई है। उनकी सारी कल्पना शरीर केन्द्रित है इसलिए उससे परे की बात सामने आती है तो उन्हें आश्चर्य होता है । मृगापुत्र को आश्चर्य हो रहा था--माता-पिता वृद्ध होने को आए हैं। उन्हें मेरी बात समझ में क्यों नहीं आ रही है? वे यह क्यों नहीं सोचते--मेरा प्रिय पुत्र एक अच्छे मार्ग पर जा रहा है ? उसको सहारा देना चाहिए। उन्हें यह कहना चाहिए- तुम दीक्षा ले रहे हो, हम भी तुम्हारे साथ चलते हैं। वे मुझे रोकना क्यों चाह रहे हैं ? माता-पिता को मृगापुत्र के आचार-व्यवहार पर आश्चर्य हो रहा था और मृगापुत्र को माता-पिता के आचार-व्यवहार पर। ये दोनों प्रकार के आश्चर्य हमारी दुनिया में चलते हैं। अपना-अपना चिन्तन सन् १६८७ की घटना है। एक मां अपने पुत्र की शिकायत लेकर मेरे पास आई। उसने कहा--महाराज ! यह बहुत आग्रही है, यह कहता है- यह नहीं खाऊंगा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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