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________________ ११४ चांदनी भीतर की गया। अब मेरी सारी धारणा बदल गई है। मुझे न राज्य अच्छा लगता है, न आपका महल अच्छा लग रहा है, न यह अंतःपुर अच्छा लग रहा है। मेरे मन में एक तड़फ और प्यास जाग गई है-मैं अतिशीघ्र अपनी स्थिति को प्राप्त करूं, इन सबको छोड़ कर अकेला हो जाऊं। माता-पिता न कुछ कहने की स्थिति में थे और न कुछ सुनने की स्थिति में थे। माता-पिता सोच रहे थे--यह ऐसी बातें कैसे कर रहा है? मृगापुत्र की बात माता-पिता नहीं समझ पा रहे थे और माता-पिता की बात को मृगापुत्र नहीं समझ पा रहा था। दोनों की समझ और स्थिति में अन्तर आ गया। मृगापुत्र ने कहा--आप चाहे माने या न मानें, मेरी बात सुनें या न सुनें। आपका मुझ पर कोई असर होने वाला नहीं है। मैं इस बात पर अटल हूं। मेरी यह निश्चित मान्यता है। इस असार संसार में, क्षणभंगुर संसार में यह शरीर जरा और मरण-दोनों से ग्रस्त है। बुढ़ापा और मौत-ये दो राहु मेरे सामने खड़े हैं ग्रसने के लिए। इस शरीर में मेरी कोई रुचि नहीं रह गई है, आर्कषण नहीं रह गया है। मेरी करबद्ध प्रार्थना है-आप मुझे इस बंधन से मुक्त होने की अनुज्ञा दें, अकेला होने की आज्ञा दें। मैं हिरण की तरह अकेला होना चाहता हूं। बॉडी इमेज जब शरीर के प्रति एक नई कल्पना बन जाती है, स्थितियां बदल जाती हैं। समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों ने एक सिद्धान्त की परिकल्पना की उसका नाम है "बॉडी इमेज"। व्यक्तित्व की व्याख्या का यह महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। प्रत्येक व्यक्ति शरीर के साथ एक अवधारणा लिए चलता है। मृगापुत्र की शरीर के प्रति अब तक यह धारणा थी-शरीर को खूब सजाना है, अत्यन्त साफ और स्वच्छ रखना है, उसे हर प्रकार से सुख-सुविधा देना है। व्यक्ति इसी धारणा के अनुरूप सुबह उठते ही सबसे पहले स्नान करता है, शरीर की साज-सज्जा करता है, दर्पण में अपने शरीर का प्रतिबिम्ब देखता है, अपने सौन्दर्य को निरखता है, परखता है। कपड़े और गहने धारण करता है। यह सारा शरीर के सौन्दर्य और साज-सज्जा के लिए होता है। इसके पीछे शरीर के प्रति हमारी एक प्रकार की धारणा काम कर रही है। मृगापुत्र की यह धारणा बदल गई। उसके मन में एक नई अवधारणा प्रस्फुटित हुई--शरीर से काम लेना है, शरीर एक नौका है, इसका उपयोग सागर को पार करने के लिए है। नदी को पार करने के लिए एक नौका का उपयोग करना है। जैसे ही नदी को पार कर तट तक पहुंच जाएंगे, इस नौका को छोड़ देंगे। हम बॉडी इमेज के सिद्धांत की व्याख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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