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________________ जहां एक भी क्षण आराम नहीं मिलता शरीर के तीन स्तर हमारा यह स्थूल शरीर है औदारिक शरीर । उसके भीतर है एक सूक्ष्म शरीर - तैजस शरीर । उसके भीतर एक और है सूक्ष्मतर शरीर- कार्मण शरीर । तैजस शरीर विद्युत् का शरीर है। शरीर के भीतर विद्यमान विद्युत् को पकड़ लिया गया है। आज शरीरशास्त्री बतलाते हैं-हमारे शरीर के भीतर बीस वॉट बिजली है और उस बिजली से एक छोटी-मोटी फैक्ट्री चलाई जा सकती है। एक है कर्म शरीर । हमने जो सोचा है, देखा है, जाना है, बाहर से जितना लिया है, उन सबका भण्डार भरा है कर्म शरीर में । कर्म शरीर के एक एक परमाणु को यदि पृथ्वी पर बिछाएं तो पूरा लाडनूं शहर ही नहीं, राजस्थान भी छोटा पड़ जाए। हिन्दुस्तान ही नहीं, पूरा विश्व भी भर जाएगा कर्म के परमाणुओं से। आज की दुनिया जैसी असंख्य दुनिया भी भर जाएंगी। इतने परमाणु भरे हैं कार्मण शरीर में । अनंतानंत परमाणु हैं इस शरीर में। वैज्ञानिक कहते हैं - इस शरीर में साठ खरब कोशिकाएं हैं। यह बहुत स्थूल बात है । साठ खरब और छह सौ खरब ही नहीं, अनंत अनंत हैं कर्म शरीर के परमाणु । इतने परमाणु हैं कि सारे लोक में भर जाएं तो भी अंत न आए। लोकाकाश के प्रदेश हैं असंख्य और कर्म परमाणु है अनंतानंत । औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर- इन तीन दीवारों को लांघकर आगे जाएं, चेतना का स्पर्श होगा। आत्मा के भीतर परमात्मा है । वह भी सीधा प्राप्त नहीं होगा। पहले गुण और पर्याय आएगा, मूल आत्मा तो उससे आगे है। द्रव्य आत्मा : नया अर्थ तत्वार्थ भाष्य में एक प्रसंग है- द्रव्य जीव क्या है? कहा गया--गुण पर्याय रहित जो मूल द्रव्य है, उसका नाम है द्रव्य जीव । यह द्रव्य जीव का एक नया अर्थ है । द्रव्य जीव का एक अर्थ यह भी किया जाता है--पहले जीव था, वह जीव शरीर से मुक्त हो गया या जो जीव पैदा होने वाला है, उसमें भी द्रव्य जीव का आरोपण किया जा सकता है। किन्तु द्रव्य जीव मूल शुद्ध द्रव्य आत्मा है, यह एक नई अवधारणा है। आत्माएं आठ हैं। एक द्रव्य आत्मा है, शेष सारी भाव आत्माएं हैं। पहले हमारा सम्पर्क भाव आत्मा से होगा, हम सीधे मूल तक नहीं पहुंच पाएंगे। वह राजा भीतर बैठा है। उस तक पहुंचने के लिए न जाने कितनी घाटियां पार करनी पड़ेंगी। जो उन्हें पार करता है, वह मूल आत्मा को पा लेता है। यह एक सुन्दर परिभाषा है- द्रव्य आत्मा-गुण पर्याय रहित आत्मा । धारणा बदल गई मृगापुत्र ने कहा - तात ! मात ! मैं इन सारे शरीरों को पार कर आत्मा में चला Jain Education International ११३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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