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चांदनी भीतर की
गुरु का समाधान
आचार्य ने कहा-वत्स ! मनुष्य की दो श्रेणियां हैं। कुछ लोग आत्मस्थ होते हैं और कुछ देहस्थ होते हैं। इन दो श्रेणियों में सारे मनुष्य समा जाते हैं। इन दोनों प्रकार के लोगों के आचार और व्यवहार में, आहार और चर्या में अन्तर रहेगा। इसका कारण है-एक आदमी शरीर में बैठा है और एक आदमी आत्मा में बैठा है। जो शरीर में बैठा है, उसका आचार-व्यवहार एक प्रकार का होगा। जो आत्मा में बैठा है, उसका आचार-व्यवहार एक प्रकार का होगा।
देहस्थाः मानवाः केचित, केचिदात्मस्थिताः जनाः।
आचारे व्यवहारे च, भेदस्तेषामतो भवेत्।।। जहां हम सबको एक दृष्टि से देखते हैं, वहां समस्या और संकट पैदा होते हैं। जब दो प्रकार के लोगों को दो प्रकार की श्रेणियों में बांट दिया जाता है तब कोई आश्चर्य नहीं होता। राग : विराग
___ जब तक विषयों में राग रहेगा, संयम से राग नहीं होगा। संयम से राग का अर्थ है--विषयों से विराग । विषयों में राग का अर्थ है--संयम से विराग । जब तक मृगापुत्र को जाति स्मृति नहीं हुई तब तक उसका विषयों से राग बना रहा। जैसे ही जाति स्मृति हुई, उसकी चेतना बदल गई। जब तक वह शरीर में बैठा था, विषयों के प्रति आकर्षण था। जाति स्मृति ज्ञान हुआ, वह आत्मा में अवस्थित हो गया, उसकी स्थिति बदल गई। उसकी विषयों में आसक्ति नहीं रही, वह संयम में अनुरक्त हो गया। उसने माता पिता के पास पहुंच कर अपनी भावना अभिव्यक्त की--
विसबहिं अरज्जतो, रज्जतो संजमम्मि य।
__अम्मापियर उवागम्म, इमं वयणमब्बवी।। मृगापुत्र की भावना
_ मृगापुत्र ने माता-पिता से कहा--मात-तात ! मैंने पांच महाव्रतों को सुना है, में मुनि धर्म को जानता हूं। मैं संसार समुद्र से विरक्त हो गया हूं। मैं प्रव्रजित होकर मुनि बनूंगा। आप मुझे अनुज्ञा दें।
सुयाणि मे पंच महव्वयाणि, नरएसु दुक्खं व तिरिक्ख जोणिसु।
निण्णिवण्णकामो मि महण्णवाओ अणुजाणह पब्वइस्सामि अम्मो।। माता-पिता यह सुनकर अवाक् रह गए। उन्होंने सोचा--यह क्या हो गया ?
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