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जहां एक भी क्षण आराम नहीं मिलता
शिष्य आचार्य की सन्निधि में आया। वंदना कर अवग्रह की याचना की-भते! क्या मैं आपके अवग्रह में आ जाऊं ? यह बहुत शिष्ट परंपरा रही है-आचार्य के पास जाना हो तो पहले दूर से अनुमति लें, फिर निकट जाएं। शिष्य अनुमति प्राप्त कर आचार्य के उपपात में पहुंचा। उसने वंदना कर निवेदन किया-भंते ! आज मैंने बड़ा आश्चर्य देखा। मैं उस आश्चर्य का कारण जानना चाहता हूं।
___ आचार्य ने कहा-वत्स ! तुमने क्या नया आश्चर्य देखा ? इस दुनिया में अनेक आश्चर्य माने जाते हैं, यह स्थूल कल्पना है। वस्तुतः दुनिया आश्चयों का घर है। इतने बड़े आश्चर्य हैं, जिन्हें शब्दों में बांधना ही कठिन हो सकता है। तुमने कैसा आश्चर्य देखा है आज ? शिष्य का आश्चर्य ___गुरुदेव ! मैंने देखा-एक प्रौढ़ आदमी बाजार में खड़ा था। वह आईसक्रीम की दुकान पर गया, आईसक्रीम खाई। फिर दूसरी दुकान पर गया, कुछ मिठाइयां खा ली। एक दुकान पर गरमागरम कचौरी बन रही थी। उसका मन फिर ललचा गया। वह तीन-चार कचौरियां खा गया। थोड़ी देर बाद वह फिर मिठाइयों की दुकान में घुस गया। दूसरी ओर मैंने देखा-एक चौदह वर्ष का बालक बाजार से गुजर रहा था। किसी ने कहा-आईसक्रीम खाओ। उस बालक ने कहा-मुझे त्याग है। कचौरी-पकौड़ी खाओ। बालक ने फिर अस्वीकार कर दिया। उसने कहा-मैं बार-बार नहीं खाता । जब भोजन करता हूं तभी खाता हूं और उस समय भी एक साथ दस-ग्यारह द्रव्यों से अधिक नहीं खाता। यह मुझे बड़ा आश्चर्य लगा--पचास वर्ष का आदमी एक के बाद दूसरी चीजें खाता चला जा रहा है और एक चौदह वर्ष का बालक स्वादिष्ट चीजों को अस्वीकार करता चला जा रहा है। व्यक्ति-व्यक्ति में इतना अंतर क्यों ? यदि चीन की ऐतिहासिक दीवार आश्चर्य है तो क्या यह मानवीय व्यवहार आश्चर्य नहीं है ? इसका कारण क्या है ? एक बड़ा हैं, एक छोटा है। जीभ दोनों के हैं, खाने की भावना दोनों में है फिर इतना अन्तर क्यों ?
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