SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ याद पिछले जन्म की १०५ उभर आई। महर्षि पतंजलि ने भी यही कहा--जब संस्कार का साक्षात्कार होता है, तब पूर्व जन्म की स्मृति हो जाती है। अनुप्रेक्षा का प्रयोग धारणा को पुष्ट करने का प्रयोग है। अभय की अनुप्रेक्षा करेंगे तो अभय का भाव पुष्ट होता चला जाएगा। अभय की धारणा बनती चली जाएगी, भय की धारणा क्षीण हो जाएगी। जब तक अभय की भावना पुष्ट नहीं होगी, भय के भाव क्षीण नहीं होंगे। एक घड़ा, जो अभी आवे से निकला है, हमें उसे गीला करना है। वह पानी की एक-दो बूंद डालने से कभी गीला नहीं होगा। उस पर पानी की बूद गिरती रहेगी तो एक क्षण ऐसा आएगा घड़ा गीला हो जाएगा। गर्म एवं शुष्क घड़े को भिगोने की एक प्रक्रिया है। घड़े पर एक-एक बूंद डालते चले जाओ, घड़ा आर्द्र हो जाएगा। जाति स्मृति का हेतु हम नियम और प्रक्रिया को महत्त्व दें। हर बात की एक प्रक्रिया होती है। प्रक्रिया सही होती है तो कार्य में सफलता मिल जाती है। मृगापुत्र ने ठीक प्रक्रिया को अपनाया, वह सम्मोहित हो गया। उस अवस्था में जाति स्मृति ज्ञान उपलब्ध हो गया। उसने देखा--मैं पूर्वजन्म में ऐसा ही मुनि था, मैंने ऐसी ही साधना की थी। जाति-स्मृति होते हो आदमी की स्थिति बदल जाती है। यदि गहरा विपाक न हो तो व्यक्ति में रूपान्तरण घटित हो जाता है। यद्यपि जाति-स्मृति ज्ञान का संबंध है ज्ञाानावरणकर्म के क्षयोपशम से किन्तु साथ में मोहनीय कर्म का भी गहरा संबंध है। भाष्य साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण गाथा है जायमाणस्स जं दुक्खं, म रमाणस्स वा पुणो। तेण दुक्खेण संमूढो, जाई सरइ न अप्पणो॥ जन्म के समय भी दुःख होता है और मरण के समय भी दुःख होता है। यह यंत्रों से मापा जाने वाला दुःख नहीं है। हम यह साक्षात् देखते हैं--जब शरीर के कण-कण में, कोशिका में गुत्थमगुत्था हुआ प्राण, उनके साथ एकमेक जैसा बना हुआ प्राण उसमें से निकलता है तब उसे निकलने में कितना कष्ट होता है। आकस्मिक निकले या प्रेरणा से, किन्तु सम्बन्ध विच्छिन करने में क्या कठिनाई नहीं होती ? अंतर वेदना नहीं होती? उस समय अत्यंत वेदना होती है पर उसे यंत्रों से मापा नहीं जा सकता । दुःख मूढ़ता या मूर्छा पैदा करता है। मरते समय भी आदमी मूर्छा में चला जाता है। शरीर का नियम है--जब तक कष्ट सहन करने की स्थिति है, आदमी जागता रहता है और जब कष्ट को सहने की शक्ति नहीं रहती है, तब व्यक्ति मूर्छा या बेहोशी में चला जाता है। व्यक्ति दुःख से मूढ़ बनता है। जब तक मूढ़ता रहती है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy