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चांदनी भीतर की
दुःख सघन रहता है। मूर्च्छा के चक्रव्यूह को तोड़े बिना पूर्व जन्म की स्मृति नहीं हो सकती। पूर्व जन्म की स्मृति के लिए मूर्च्छा को तोड़ना जरूरी है। प्रस्तुत प्रसंग में मोहनीय कर्म का तात्पर्य यही है - जो प्रबल मूर्च्छा स्मृति में व्यवधान डाल रही है, उसे तोड़ो ।
प्रतिक्रमण
सम्मोहन के कुछ प्रयोग किए गए। एक व्यक्ति को सम्मोहित किया, उसे अतीत को देखने का सुझाव दिया। दो वर्ष की अवस्थाओं की स्मृतियां सजीव हो गईं। जैसे-जैसे सम्मोहन या सुझाव द्वारा, आत्म-संवेदन द्वारा मूर्च्छा टूटती चली जाती है वैसे-वैसे अतीत की स्मृति तीव्र होती चली जाती है। दो वर्ष की ही नहीं, एक वर्ष की और उससे पहले की भी स्मृति में व्यक्ति लौट सकता है। सम्मोहन के प्रयोग द्वारा ऐसी अनेक घटनाएं उजागर हुई हैं। प्रतिक्रमण की भी यही प्रक्रिया है। हम यथाक्रम आलोचना करें। सुबह चार बजे उठने के बाद से लेकर सांयकाल तक क्या-क्या किया, उसकी स्मृति और आलोचना करें। प्रातः और सायं प्रतिक्रमण का अर्थ यही है । प्रतिक्रमण यानि अतीत की स्मृति करते चले जाओ - आज मैंने किस-किस क्षण क्या-क्या किया ? अतीत के सिंहावलोकन अतीत की ओर प्रस्थान की यह प्रक्रिया मूर्च्छा को तोड़ने की प्रक्रिया है । यदि प्रतिक्रमण नहीं होता है तो मूर्च्छा गहरी होती चली जाएगी। इस दृष्टि से प्रतिक्रमण का बहुत महत्त्व है। हम इसे रूढ़ि न मानें। इसका समुचित मूल्यांकन करें। जब तक प्रतिक्रमण के महत्त्व को नहीं जाना जा सकता तब तक ही उसे रूढ़ि के रूप में लिया जाता है। अच्छी चीज रूढ़ि बन जाती है, इसका बड़ा कारण है अज्ञान ।
गलती उनकी है
एक प्रशासक को कृषि विभाग का अधिकारी बनाया गया। अधिकारी को सूचना मिली - आलू की फसल बहुत बढ़िया हुई है। अधिकारी फसल का निरीक्षण करने के लिए आया । उसने देखा - आलू के खेत हरे भरे हैं। आलू एक भी दिखाई नहीं दे रहा है। वह चारों तरफ घूमा, निराश हो गया। उसने क्षुब्ध होकर कर्मचारियों से कहा- तुमने मुझे गलत सूचना दी है। मुझे धोखे में रखा है। तुम कह रहे थे - आलू की फसल बहुत बढ़िया हुई है और यहां एक भी आलू दिखाई नहीं दे रहा है। मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया है। कर्मचारी और काश्तकार देखते रह गए- कैसा . अधिकारी आया है? इसे इतना भी पता नहीं कि आलू कहां होते हैं। एक कर्मचारी ने मुस्कुराते हुए कहा -- श्रीमान् | आलू ऐसे ऊपर दिखाई नहीं देते हैं। उन्हें देखने के
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