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याद पिछले जन्म की
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आपको नाम बतलाया था। आप इतनी देर में भूल गए। आपको मेरा नाम भी याद नहीं रहता। दूसरे दिन फिर वही व्यक्ति मिला और वे ही प्रश्न फिर पूछे गए-तुम कौन हो, कहां से आए हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? व्यक्ति सोचता है-यह क्या ? मैंने सुना था-इनकी स्मृति बहुत तेज है। इन्हें हजारों पद्य कंठस्थ हैं। इनको तो एक नाम भी याद नहीं रहा। तीन बार बता दिया। फिर भी भूल गये। वह आश्चर्य में डूब जाता है। धारणा से जुड़ी है स्मृति
प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसी घटनाएं घटती हैं। इसका कारण है--व्यक्ति जिस बात की धारणा मजबूत नहीं करता, वह बात बीस बार पूछने पर भी विस्मृत हो जाती है। जैसे-जैसे आदमी समझदार होता है, काम की बातों की धारणा करता चला जाता है, निकम्मी बातों को छोड़ता चला जाता है। जिस बात को छोड़ते चले जाएंगे, उसकी धारणा नहीं बनेगी। जिसकी धारणा नहीं होगी, उसकी स्मृति नहीं रहेगी। इस स्थिति में अनेक बार समस्या पैदा हो जाती है। एक व्यक्ति कहता है- मैंने तुम्हें यह बात कही थी। दूसरा व्यक्ति कहता है--नहीं ! तुमने मुझे कुछ कहा ही नहीं। उस व्यक्ति ने कहा-तुम झूठ बोलते हो। दूसरा व्यक्ति भी उसी भाषा में बोलने लग जाता है। एक व्यक्ति कह रहा है--तुम झूठ बोलते हो और दूसरा कह रहा है-तुम झूठ बोल रहे हो। इस स्थिति में किसे सही माने ? क्या निर्णय करे ? मनोविज्ञान के क्षेत्र में यह बड़ी उलझन है। इसका समाधान यही होगा--दोनों झूठ नहीं बोल रहे हैं। जिसने कहा-मैंने अमुक बात कही है, वह भी सही कहता है। जिसने कहा, मैंने यह बात सुनी, वह भी सही है। तुम दोनों सही हो
पत्नी ने आइंस्टीन से कहा-आपका नौकर कमजोर है, निकम्मा है। कोई काम नहीं करता। ऐसे निकम्मे आदमी को रखने का अर्थ ही क्या है ? आईस्टीन बोले-तुम ठीक कहती हो, वह ऐसा ही है। नौकर दूर खड़ा सुन रहा था। पत्नी चली गई। नौकर ने आईंस्टीन से कहा--मालिक ! मैं सब काम करता हूं, कभी काम से जी नहीं चुराता हूं फिर भी मुझे दिन भर टोका जाता है। मालकिन बात-बात पर मुझे डांटती है। आइंस्टीन बोला-तुम ठीक कहते हो। पत्नी ने यह सुना, वह आवेश से भर उठी। उसने कहा-यह क्या ? यह भी सही और मैं भी सही। या तो यह झूठा होगा या मैं। दोनों सही कैसे हो सकते हैं ? आइंस्टीन ने फिर वही उत्तर दिया--तुम भी सही हो, यह भी सही है और जो मैं कहता हूं, वह भी सही है।
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