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सम्मोहन : जाति स्मृति
मृगापुत्र उस अवस्था में चला गया। सारे विकल्प समाप्त हो गए, वह केवल इसी विकल्प में डूब गया- मैंने ऐसा रूप कहीं देखा है । उस सम्मोहित अवस्था में मृगापुत्र को जातिस्मृति ज्ञान उपलब्ध हो गया। जैसे ही पूर्वजन्म की स्मृति हुई, अतीत वर्तमान बन गया। आदमी को तब कितना आह्लाद होता है, जब अतीत वर्तमान बनता है। किसी व्यक्ति से पूछा जाए- पांच दिन पहले क्या खाया था ? यदि उसे यह याद आ जाए और वह उस वस्तु का नाम बता दे तो मन में बड़ा हर्ष उत्पन्न होता है। बहुत कम लोगों को यह याद रहता है कि पांच दिन पहले क्या खाया था । यदि किसी को यह पूछा जाए कि एक वर्ष पहले क्या खाया था तो शायद उत्तर देना अत्यन्त मुश्किल हो जाए। व्यक्ति संभवतः इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाएगा। ग्रहण, धारणा और स्मृति
अतीत में लौटना बहुत कठिन होता है। वही अतीत याद रहता है, जिसकी धारणा मजबूत बन जाती है । ग्रहण, धारणा और स्मृति- इन तीनों की एक श्रृंखला है । पहला तत्त्व है - ग्रहण - - अवग्रह कितना मजबूत हो रहा है। अवग्रहण सामान्य है तो धारणा कमजोर बनेगी । अवग्रह से ईहा और ईहा से अवाय - यह एक पूरा क्रम है - ग्रहण का । अवाय के बाद होती है धारणा । जिस व्यक्ति में धारणा की शक्ति जितनी मजबूत है उस व्यक्ति में स्मृति की शक्ति भी उतनी ही मजबूत होगी। जब तक विषयों में और शरीर में मन चंचल बना रहता है तब तक धारणा स्थिर नहीं होती। मन की चंचलता के कम होने पर ही धारणा सुदृढ़ हो सकती है। विषयेषु शरीरे च, मनश्चांचल्यमश्नुते ।
ताभ्यां विरतिमापत्रे, धारणा स्थिरतां व्रजते ।।
समस्या स्मरण शक्ति की
चांदनी भीतर की
बहुत लोग कहते हैं -- स्मरण शक्ति कमजोर है पर वे इस बात को भुला देते हैं - स्मृति कमजोर नहीं है, धारणा कमजोर है। धारणा की शक्ति कमजोर है । स्मृति अपने आपमें स्वतंत्र नहीं है, वह धारणा से बंधी हुई है ।
इस संदर्भ में हम जैन मनोविज्ञान का विश्लेषण करें। विस्मृति की समस्या कहां पैदा नहीं होती ? एक व्यक्ति बहुत विद्वान् है, हजारों ग्रन्थ याद कर लेता है । जो भी पढ़ता है, उसे भूलता नहीं । उसने एक व्यक्ति से पूछा- तुम्हारा नाम क्या है ? उस व्यक्ति ने अपना नाम बता दिया। दो घंटे बीते । फिर वही व्यक्ति मिला। उसने फिर वही प्रश्न दोहराया - तुम्हारा नाम क्या है ? उस व्यक्ति ने कहा- अभी दो घंटे पहले
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