SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ याद पिछले जन्म की सहज त्राटक सिद्ध हो गया । त्राटक का दूसरा नाम है सम्मोहन । सम्मोहन का अनिवार्य अंग है त्राटक | जब तक त्राटक की साधना अच्छी नहीं है, सम्मोहन की साधना सफल नहीं होती। आत्म-सम्मोहन हो या पर सम्मोहन- त्राटक की साधना अनिवार्य है। जैन पारिभाषिक शब्द है अनिमेष प्रेक्षा । महावीर जब ध्यान करते, अनिमेष दृष्टि से करते थे। एक पुद्गल पर अनिमेष दृष्टि से ध्यान करते हैं तो वस्तु का स्वरूप बदल जाता है । एक वस्तु को देखें, पुस्तक, पेंसिल या किसी भी पदार्थ को दस मिनट तक एकटक देखते चले जाएं, उस वस्तु का स्वरूप बदल जाएगा। पहले सब कुछ दिखाई देता है और उसके बाद कुछ अन्यथा दिखाई देने लग जाता है। देखते-देखते ऐसी प्रकाश की किरणें फूटने लगती हैं कि सारी वस्तु बदल जाती है। बदलते बदलते वस्तु भी गायब हो जाती है, कोरा आभामण्डल ही शेष रह जाता है। जैसे व्यक्ति का आभामण्डल होता है वैसे ही पदार्थों का भी अपना आभामण्डल होता है। सम्मोहन का हार्द मृगापुत्र ने अनिमेष दृष्टि से देखा-ध्यान केन्द्रित हो गया, वह चिंतन की गहराई में उतरा, मन में विकल्प उठा- ऐसा कहीं देखा है, इस रूप को कहीं देखा है । वह उसी विकल्प में उलझ गया, सम्मोहित हो गया। मृगापुत्र सम्मोहन की अवस्था में चला गया। सम्मोहित हुए बिना कोई व्यक्ति विशिष्टता को उपलब्ध नहीं हो सकता। आज सम्मोहन हल्के प्रयोगों के कारण काफी बदनाम हो चुका है पर वह है बहु महत्त्वपूर्ण । एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है योग वाशिष्ठ, जिसमें ऋषि वशिष्ठ ने राम को संबोधन दिया था, वह गहन आध्यात्मिक ग्रन्थ है। योग वाशिष्ठ में लिखा है--भावना का प्रयोग किये बिना कोई व्यक्ति अध्यात्म की गहराइयों में नहीं जा सकता, अपने भीतर डुबकियां नहीं लगा सकता । भावना का ही दूसरा नाम है - सम्मोहन । किसी भावना से स्वयं को भावित कर लेना या सम्मोहित कर लेना । एक व्यक्ति अर्हम् का जप करता है, वह अर्हम् मंत्र का बार-बार उच्चारण करता है। उच्चारण का अपना मूल्य है, किन्तु उच्चारण के साथ भावना का प्रयोग हो, व्यक्ति अर्हत् की अनुभूति करने लग जाए तो वह अर्हत् के रूप में बदल जाता है । यह योग का गुण संक्रमण का सिद्धांत है। गरुड़ की भावना करने वाला गरुड़ की शक्ति से और हाथी की भावना करने वाला अपने मन में उसके बल की अनुभूति करता है। भावना या सम्मोहन के प्रयोग का हार्द है -- जिसकी भावना करे, उसमें तन्मय या तल्लीन हो जाना । व्यक्ति केवल उसी भाव में लीन हो जाता है, शेष सारे विकल्प क्षीण हो जाते हैं। Jain Education International १०१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy